
अविनाश तिवारी के दोहे
अविनाश तिवारी के दोहे घड़ी घड़ी घड़ी का फेर है, मन में राखो धीर।राजा रंक बन जात है, बदल जात तकदीर।। प्रेम प्रेम न सौदा मानिये, आतम सुने पुकार।हरि मिलत हैं प्रीत भजेमति समझो व्यापार।। दान देवन तो करतार है, …
अविनाश तिवारी के दोहे घड़ी घड़ी घड़ी का फेर है, मन में राखो धीर।राजा रंक बन जात है, बदल जात तकदीर।। प्रेम प्रेम न सौदा मानिये, आतम सुने पुकार।हरि मिलत हैं प्रीत भजेमति समझो व्यापार।। दान देवन तो करतार है, …
कारगिल विजय दिवस कारगिल विजय दिवस है,जीत का त्यौहार है ।उन शहीदों को नमन है,वंदन बार-बार है ।। वीर तुम बढे चले थे,चल रही थी गोलियाँ ।बर्फ की चादरों पे दुश्मनों की टोलीयाँ ।।मगर तुम रुके नहीं, इंच भी डिगे…
किसान पर हाइकु मेघ बरसेअनचाही बारिशटूटती आस खड़ी फसलहो रही है बर्बादरोता किसान खेत हैं सूखेभूख कौन मिटायेंबंजर धरा। रस्सी के फंदेशाहकारों का कर्जलम्बी गर्दन। कर्ज से मुक्तिशासन से राहतकृषक हंसा। अविनाश तिवारी Post Views: 53
राख विषय पर हाइकु- रमेश कुमार सोनी 1 मोक्ष ढूंढने चला – चली की बेला राख हो चला ।। 2 राख का डर जिंदगी ना रुकती मौत है सखी ।। 3 पानी जिंदगी अग्नि , राख की सखी नहीं निभती…
उन बातों को मत छेड़िये सारी बातें बीत गई उन बातों को मत छेड़िये,जो तुम बिन गुजरी उन रातों को मत छेड़िये। तुम मिलो न मिलो हमसे रूबरू होकर कभी,लाखो शिकायते हैं उन हालातों को मत छेड़िये। एक नजर भर…
जुल्मी-अगहन जुलुम ढाये री सखी,अलबेला अगहन!शीत लहर की कर के सवारी,इतराये चौदहों भुवन!!धुंध की ओढ़नी ओढ़ के धरती,कुसुमन सेज सजाती।ओस बूंद नहा किरणें उषा की,दिवस मिलन सकुचाती। विश्मय सखी शरमाये रवि- वर,बहियां गहे न धरा दुल्हन!!जुलूम…..सूझे न मारग क्षितिज व्योम-पथ,लथपथ…
चेहरे पर कविता सुनोकुछ चेहरोंके भावों को पढ़नाचाहती हूॅपर नाकाम रहती हूॅ शायदखिलखिलाती धूप सीहॅसी उनकीझुर्रियों की सुन्दरताबढ़ते हैंपढ़ना चाहती हूॅउस सुन्दरता के पीछेएक किताबजिसमें कितनेगमों के अफसाने लिखे हैंना जाने कितने अरमान दबे हैंना जाने कितने फाँके लिखे हैं…
इन्तजार पर कविता विसंगति छाई संसृति मेंकरदे समता का संचार।मुझे ,उन सबका इन्तजार…। जीवन की माँ ही है, रक्षकफिर कैसे बन जाती भक्षक ?फिर हत्या, हो कन्या भ्रूण की या कन्या नवजात की ।रक्षा करने अपनी संतान कीजो भरे माँ…
संस्कार पर कविता अहो,युधिष्ठिर हार गया है,दयूत् क्रीड़ा में नारी को,दुःसाशन भी खींच रहा है,संस्कारों की हर साड़ी को। अपनी लाज बचाने जनता,सिंहासन से भीड़ जाओ तुम,भीख नही अधिकार मांगने,कली काल से लड़ जाओ तुम,विपरित काल घोर कलयुग है,ना याद…
क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो क्यूँ झूठा प्यार दिखाते हो ….दिल रह रह कर तड़पाते हो .. गैरों से हंसकर मिलते होबस हम से ही इतराते हो घायल करते हो जलवों से …नज़रों के तीर चलाते हो … जब प्यार …