कविता -शबरी के बेर
शबरी का वह बेर नही था
सच्ची भक्ती प्रेम वही था
ना छुआछूत ना जाति पात
भाव भक्ति अनमोल वही था
शबरी का संदेश यही था,
शबरी का वह बेर नही था।
बेरों सा अच्छाई चुन लो
मीठी मीठी सपने बुन लो
राह देखती शबरी सा तुम
आहट अपने मन में सुन लो।
प्रभु मानव का नेह यही था
जूठी बेर का भेद यही था।
दिन हर दिन वह सपने बुनती
सदा सजाए रखती धरती
दर्शन के आशा में प्रभु की
पग-पग हर पल देखा करती
भक्ति भाव का गेह यही था
शबरी का संदेश यही था,
राम हेतु पथ नजर लगाए
मन में प्रभु की बिम्ब बनाए
कर न्योछावर जीवन अपना
वह जीवन का मूल्य बताए
जीवन मूल्य विशेष यही था
शबरी का संदेश यही था,
शबरी का ही अर्थ धैर्य है
सुंदर जीवन का सौंदर्य है
कवि शबरी के अंतर्मन में
पाये प्रभु का अमर शौर्य है
कवि का भी उपदेश यही था
शबरी का संदेश यही था,
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी