. नई भोर हुई – सुशी सक्सेना
नई भोर हुई, नई किरन जगी।
भूमि ईश्वर की, नई सृजन लगी।
नई धूप खिली, नई आस पली,
ओढ़ के सुनहरी चुनरी प्रकृति हंसी,
नया नया सा आकाश है, नये नज़ारे,
नववर्ष में कह दो साहिब, हम तुम्हारे
सुनकर जिसे, मन में तपन लगी।
नववर्ष में है, बस यही मनोकामना,
दंश झेले जो हमने पहले, पुनः आएं ना,
नई खुशियों का, मिलकर करें स्वागत,
नये अवसरों से होकर, हम अवगत,
जमीं पर ही उड़ने की लगन लगी।
एक नया वादा, खुद से कर लें आज,
उत्साह से करें नये जीवन का आगाज़,
नई प्रेरणा हों, नई नई हों मंजिलें,
सच्चाई के साथ हम नई राहों पर चलें,
कर्मपथ पर चलने में दुनिया मगन लगी।
सुशी सक्सेना