कमल पर दोहे

प्रस्तुत कविता डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’ रायपुर (छ.ग.) द्वारा रचित है जिसे दोहा छंद विधा में लिखा गया है। यहां पर कमल पुष्प के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है।

कमल पर दोहे

विधा — दोहा छंद
शीर्षक — “कमल”

कमल विराजे हरिप्रिया, देती धन वरदान।
धन्य हुआ मकरंद अति, अपना गौरव जान।।

खिलते जल में कुमुदिनी, लगे जलाशय भाल।
उसके चंचल पंखुड़ी, शोभित करते ताल।।

माला बनकर गल सजे, चढ़े चरण भगवान।
पूजन साधन में सदा, नीरज श्रेष्ठ सुजान।।

नलिन विलोचन राम हैं, उनकी कृपा अनन्त।
कमल पुष्प से साधना, यज्ञ किए भगवन्त।।

शतदल महिमा जान तू, करना सदा प्रयोग।
गुणता की ये खान है, पहचानें सब लोग।।

वारिज कुवलय पंकजा, इसके सुंदर नाम।
हाथ विराजे आत्मभू, देह सजे प्रिय श्याम।।

सभी सुमन में श्रेष्ठ अति, उत्पल रंग स्वरूप।
मृदा बिना विकसित हुआ, रंगत बड़े अनूप।।

यज्ञ हवन के दौर में, कमल बीज अति खास।
शुचि आहुति करना सदा, फैले भक्ति उजास।।

जल में नित खिलता रहा, नीर बने वो मीत।
जलद नित्य सुरभित लगे, मन पुष्कर का जीत।।

कमल पुष्प के गुच्छ से, वंदन करलें ईश।
कहे रमा ये सर्वदा, कृपा मिले जगदीश।।

~ डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’ रायपुर (छ.ग.)

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