खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

खिचड़ी भाषा त्याग कर


खिचड़ी भाषा त्याग कर
साहित्य कीजिए लेख।
निज जननी को नमन करो
कहे कवि विजय लेख।।

हिन्दी साहित्य इतिहास में
खिचड़ी भाषा कर परहेज।
इंग्लिश शब्द को न डालिए
हिन्दी वाणी का है संदेश।।

हिन्दी स्वयं में सामर्थ्य है
हर शब्दों का उल्लेख।
हर वस्तु का हिन्दी नाम है
हिन्दी शब्दकोश में लेख।।

हिन्दी इतना कमजोर नहीं
जो मिलायें खिचड़ी भाषा।
सभी भाषा का अपमान है
क्यों करते मिलावटी आशा।

टांग टुटकर द्वी भाषा की
लंगड़ाईयां ही आती है।
साहित्य सृजन कार हिंदी का
मुस्काईयां भी आती है।

क्षमा क्षमा चाहूंगा क्षमा
इन साहित्य कारों से।
साहित्य सृजन कीजिए
हिन्दी विशेषांक विचारों से।।