आतंक पर कुण्डलिया
जल जंगल अरु अवनि पर ,
नर का है आतंक ।
नंगा होकर नाचता ,
कल का गंगू रंक ।।
कल का गंगू रंक ,
नगर का सेठ कहाता ।
मानवता कर कत्ल ,
.. लहू से रोज नहाता ।।
कह ननकी कवि तुच्छ ,
मची आपस में दंगल ।
धरती के ये तत्व ,
बिलखते हैं जल जंगल ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह , जैजैपुर (छ. ग. )
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद