ऐसा साल ना देना दुबारा
गुजरा हुआ ये साल
कर गया सबको बेहाल।
ना कोई जश्न ना कोई त्योहार
बस घर की वो चार दीवार।
कभी लिविंग रूम तो कभी बेडरूम
यही थी दुनिया और यही थे सब।
कभी हाफ पैंट, तो कभी ट्रैक पैंट
पहनने मिला ही नहीं कभी कोट पैंट।
ना कोई दोस्त मिला ना कोई रिश्तेदार
बस फोन पे ही हुआ है सबका दीदार।
ना कोई खेल ना कोई स्कूल
मुरझा गए हम कोमल फूल।
पॉजिटिव सुनके दिल घबराया
नेगेटिव सुनके मन मुस्कराया।
कई घरों ने इस साल में
अपने स्वजन को भी गुमाया।
खुशियां में तो चलो जा न पाए
पर दुख में भी तो साथ निभा न पाए।
हे ईश्वर परमेश्वर तुझे पुकारा
ऐसा साल ना देना दुबारा।
– अमिषी उपाध्याय