अकिल की शायरी
चाहत है ये मेरी कुछ ऐसा कर जाऊँ,
भारत की धरती को अपने लहू से रंग जाऊँ।
ख्वाहिश थी ये मेरी की माँ की गोद में झूमलूँ,
बुढ़े वालिद की नजर को पढ़ूँ और बीबी के हाथों को चूम लूँ।
कोई बतादे मुझको कहाँ है वो बचपन की गलियाँ,
वो गुड्डा – गुड्डी, चोर-सिपाही, दोस्त और सहेलीयाँ।
वो राखी का त्योहार और प्यारी बहन की वारियाँ,
वो नटखट दोस्त और रुठ कर मनाने वाली यारीयाँ।
गाँव में बुढ़े आम का पेड़ और काकी के मटके का ठंडा पानी,
गुजर गए कैसे बचपन लो आ गई ये जवानी।
कुछ याद आती है मेहबूबा की वो दिलकश नजरें,
खिड़की से छुपके कागज में लिख के बताती अपनी दिल की खबरें।
बना जब मैं सिपाही खुश हुए दोस्त – अहबाब, अब्बू-अम्मी और दादी,
वादा अपना कर पूरा करली अपनी मेहबूबा से शादी।
बदला ये वक्त लेकिन हम बदले कभी नहीं,
ठंड बरसात और गर्मी में ये जज्बात कभी दबी नहीं।
ख्वाहिश मेरी इतनी सी कि भारत के लोग सोए चैन से मनाए दिपावली और होली,
क्योंकि हम हैं रखवाले तुम्हारे, हम झेलेंगे बारूद और गोली।
देकर जान हम अपने तिरंगे को झुकने न देंगे,
काट सिर दुश्मनों के, विजय – पथ को रूकने न देंगे।
अगर हो जाऊँ मैं शहीद ए देशवासीयों एक छोटा सा भूल कर देना,
बस मेरे कब्र में और राहें वीरों को तुम फूल से भर देना।।
—– अकिल खान, रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.