इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
इन्द्र धनुष के रंग उड़े हैं
. देख धरा की तरुणाई।
छीन लिए हाथों के कंगन
. धूम्र रेख नभ में छाई।।
सुंदर सूरत का अपराधी
. मूरत सुंदर गढ़ता है
कौंध दामिनी ताक ताक पथ
. चन्दा नभ में चढ़ता है
. नारी का शृंगार लुटेरा
पाहन लगता सुखदाई।
इन्द्रधनुष…………..।।
यौवन किया तिरोहित नभ पर
. भू को गौतम शाप मिले
. बने छली शशि इंद्र विधाता
भग्न हृदय को कौन सिले
. छंद लिखे मन गीत चितेरे
पाहन पवनी चतुराई।
इन्द्र…………………।।
रेत करे आराधन घन का
. खजुराहो पथ मेघ चले
. भूल चकोरी का प्रण चंदा
. छिपे नयन की छाँव तले
. पुरवाई की बाट निहारे
. सागर चाहे ठकुराई।
इन्द्र धनुष के रंग उड़े हैं
देख ..धरा की तरुणाई।।
बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
बौहरा-भवन ३०३३२७
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान