वीर नारायण तोर जीनगी के एके ठन अधार। सादा जीवन जीबो अउ बढ़िया रखबो विचार। हक के बात आही त, नई झुकन गा बिंझवार अंग्रेज ला चुनौती देबो, मचा देबो हाहाकार।
सोनाखान मा जनम लिस, रामराय परिवार। जेकर पूर्वज रिहीन तीन सौ गां के जमींदार। अकाल पढ़िस राज मा, भुखमरी के शिकार। वीर अपन आंखी ले तो , नइ सकिस निहार।
माखनलाल रहीस हे, कसडोल के साहूकार। एकदम निर्दई जमाखोरी, असत के बौछार। नई दिस जी एकोदाना,जनता हाेईन लचार। तेकर बर लड़ीस हमर वीर नारायण सरदार।
आजादी के अलख जगैय्या, तोर बल अपार। क्रूर अंग्रेज मन के आघू मा तै लड़े बर तैयार। विद्रोही सेना बनाके, माटी के छूटिस उधार। बैरी कापें डर म, जब कबरा मा करस सवार।
कुर्रुपाट के जंगल ल, बनाय तै दुर्गम दीवार। अंग्रेज मन ला नचा डारे, करके तै छापामार। परेशान करे जीभर अउ नई सहे तै अत्याचार। शहादत तोर देखके पूरा देस करिस जयकार।
वसंत भारतीय वसंत को दर्शाता है, और ऋतु का मौसम है। वसंत ऋतु के मुख्य त्योहारों में से एक वसंत पंचमी (संस्कृत: वसन्त पञ्चमी) को मनाया जाता है, जो भारतीय समाज में एक सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार है, जिसे वसंत के पहले दिन, हिंदू महीने के पांचवें दिन (पंचमी) को मनाया जाता है। माघ (जनवरी-फरवरी)। बसंत ऋतू के दौरान भारतीय कैलेंडर में नए साल की शुरुआत चैत्र महीने से होती है। इसी पर आधारित है यह वसंत ऋतु पर छोटी सी कविता
वसंत ऋतु पर छोटी सी कविता
बसंत के मौसम पर कविता – उपमेंद्र सक्सेना
कोयल की मीठी बोली में,ऐसा भाव समाता है अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
बौर आम के पेड़ों पर है,जिसकी मधुर गंध बिखरी सरसों पर पीले फूलों से,इतनी सुंदरता निखरी आज हरी साड़ी पर जिसने,ओढ़ी है पीली चादर ऐसी धरती पर पाते हैं,कामदेव-रति अब आदर
भौंरा तो मकरंद यहाँ पी,मस्ती में भर जाता है अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
वृक्ष, लताओं, पौधों पर हैं,तरह-तरह के फूल खिले मँडराती तितलियाँ वहाँ पर,नर- नारी भी हिले-मिले मधुमक्खी भी फूलों से अब,जी भर रस को पाती हैं इसीलिए इस मौसम में वे,मधु भी खूब बनाती हैं
चिड़ियों का चूँ- चूँ करना भी, सबको इतना भाता है अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
विद्या की देवी का पूजन,जो बसंत में करते हैं उनकी बुद्धि ठीक रहती है,बिगड़े काम सँवरते हैं सुस्ती और उदासी अब तो,नहीं कहीं भी दिखती है आज लेखनी अनायास ही,गौरव- गाथा लिखती है
पीले कपड़े पहन यहाँ पर,कोई रास रचाता है अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
आज रबी की फसल देखकर, सब किसान हैं झूम रहे जीवन में रस जिनके भरता,वे किस्मत को चूम रहे घर- घर में उत्सव है होता,आज सुहाना पवन चला सूरज भी कुछ गर्मी देता,लगता सब के लिए भला
मधुरिम सपनों को लेकर जो, आज यहाँ पर आता है अब बसंत का मौसम मन में, नयी उमंगें लाता है।
बने आप भोले जहर पी लिया सब, लगें आप हमको सब से ही न्यारे निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।
बजे हर तरफ आपका खूब डंका, न होती किसी को कहीं आज शंका भवानी की चाहत हो क्यों न पूरी, बनी थी तभी तो सोने की लंका मिली दक्षिणा में जिसे एक दिन वह, नहीं फिर रही थी उसी के सहारे निवेदन करें हम महादेव प्यारे,न डूबें कभी भी हमारे सितारे।
रखें सोम के दिन यहाँ लोग व्रत जब, भला कोई तेरस वे क्यों भुलाएँ करें आपका जाप जो लोग हर दिन, सदा आप उनको सुखों में झुलाएँ सदा पूजते सुर- असुर आपको सब, बनें आपकी वे आँखों के तारे निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।
सदा से रही आस्था आप पर ही, बहाते रहें प्यार से खूब गंगा मिले सज्जनों को न अब कष्ट कोई, रहे मन सभी का यहाँ आज चंगा रहे आपकी ही कृपा- दृष्टि हम पर, लगेगी तभी नाव अपनी किनारे निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।
गमों से हमें दूर रखना सदा ही, न बीमारियाँ भी हमें अब सताएँ जलें आज हमसे रखें बैर जो भी, कभी भूल से भी नहीं पास आएँ मिले चैन की नींद हमको यहाँ पर, न धन की कमी हो बनें काम सारे निवेदन करें हम महादेव प्यारे, न डूबें कभी भी हमारे सितारे।