महाभारत पर दोहा संग्रह। अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, द्रौपदी और अन्य पात्रों की जीवन गाथाओं को संक्षेप में काव्य रूप में जानें। जानिए इन महाकाव्य नायकों की विशेषताएं और शिक्षाएं।
महाभारत भारत का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति के इतिहास वर्ग में आता है। यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है।
महाभारत पर दोहा संग्रह
मुख्य बिन्दु :-
कौरव पर दोहा
अनुचित हठ अंकुश करें, संतानों की आप।
कौरव सम असहाय हो, हठी पुत्र अभिशाप।।
कर्ण पर दोहा
अस्त्र शस्त्र विद्या धनी, खड़े अधर्मी साथ।
निष्फल सब वरदान हों, शक्ति रहित दो हाथ।।
अश्वत्थामा पर दोहा
विद्या बल करने लगे, शाश्वत जग का नाश।
चाह असंगत पुत्र की, बाँध ब्रह्मा के पाश।।
भीष्म पितामह पर दोहा
भीष्म प्रतिज्ञा कीजिये,सोच धर्महित ज्ञान।
वरन अधर्मी पग तले, सहन करो अपमान।।
दुर्योधन पर दोहा
शक्ति राज्य अरु संपदा, दुराचार सह भोग।
स्वयं नाश दर्शन करे, यही नियत संयोग।।
धृतराष्ट्र पर दोहा
नेत्रहीन के हाथ में, मुद्रा मदिरा मोह।
सर्वनाश निश्चित करे, सत्ता काया खोह।।
अर्जुन पर दोहा
चंचल मन विद्या रखें, बाँध बुद्धि की डोर।
विजय सदा गांडीव दे, जयकारे चहुँओर।।
शकुनि पर दोहा
द्वेष कपट छल छोड़िए, कूटनीति की दाँव।
सफल सुखद संभव कहाँं, शूल वृक्ष की छाँव।।
युधिष्ठिर पर दोहा
धर्म कर्म पथ में रहें, पालन प्रतिपल नाथ।
अविजित जग में धर्म है, विजय तुम्हारे हाथ।।
श्री कृष्ण पर दोहा
धर्म न्याय संगत रहें, सोच प्रथम परमार्थ।
चक्र सुदर्शन थाम कर, करें कर्म चरितार्थ।।
महाभारत पर दोहा के अर्थ
महाभारत के पात्रों पर आपके द्वारा प्रस्तुत दोहों के अर्थ इस प्रकार हैं:
- कौरव
अनुचित हठ और जिद से अपनी संतानों पर नियंत्रण नहीं करना अनर्थकारी हो सकता है। कौरवों की तरह जिद्दी पुत्र परिवार और समाज के लिए अभिशाप होते हैं। - कर्ण
भले ही कर्ण अस्त्र-शस्त्र और विद्या में प्रवीण था, लेकिन वह अधर्म के साथ खड़ा था। उसके सारे वरदान निष्फल हो गए, और उसकी ताकत भी बेकार हो गई क्योंकि उसका साथ अधर्मी था। - अश्वत्थामा
अश्वत्थामा, जो विद्या और बल से संपन्न था, अंततः अपनी क्रोधी प्रवृत्ति से संसार का नाश करने पर उतारू हो गया। पिता की असंगत अपेक्षाओं ने उसे विनाश की ओर धकेल दिया। - भीष्म पितामह
भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा धर्म और ज्ञान के नाम पर की, लेकिन अधर्मियों के साथ जुड़ने के कारण उन्हें अपमान सहना पड़ा। उनका बलिदान उन पर भारी पड़ा। - दुर्योधन
शक्ति, राज्य और संपदा के लोभ में दुर्योधन ने दुराचार का रास्ता अपनाया। इस कारण वह स्वयं अपने नाश को सामने देखते हुए भी उसे रोक नहीं पाया, क्योंकि यही उसकी नियति थी। - धृतराष्ट्र
धृतराष्ट्र, जो नेत्रहीन थे, सत्ता और मोह के नशे में खोए हुए थे। उनका यह मोह परिवार और राज्य का सर्वनाश करने वाला साबित हुआ। - अर्जुन
अर्जुन के चंचल मन को विद्या और ज्ञान ने बांधे रखा, और जब उसने अपनी बुद्धि से गांडीव का सहारा लिया, तब उसे सर्वत्र विजय मिली और उसकी जयकार पूरे संसार में गूंज उठी। - शकुनि
शकुनि के द्वेष, छल और कपट ने उसके जीवन में विष बो दिया। छल-कपट और कूटनीति की चालों से जीवन में कोई सच्चा सुख और सफलता संभव नहीं होती, यह ठीक वैसा ही है जैसे कांटे के वृक्ष की छाया में सुख तलाशना। - युधिष्ठिर
युधिष्ठिर धर्म के पथ पर चलते हुए अपने कर्मों का पालन करते रहे। उनके धर्म के प्रति समर्पण ने उन्हें जग में अजेय बना दिया, और विजय उनके हाथ में थी क्योंकि धर्म ही सबसे बड़ी विजय है। - श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण का संदेश है कि धर्म और न्याय का पालन करते हुए हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचें। उन्होंने सुदर्शन चक्र उठाकर कर्म के महत्व को सिद्ध किया, जिससे धर्म की स्थापना हुई।
महाभारत पर दोहा संग्रह महाभारत के विभिन्न पात्रों के गुण, दोष, और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं, जो हमें जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में सही दिशा दिखाते हैं।
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