Author: कविता बहार

  • तेरी यादों का सामान – सुशी सक्सेनास

    तेरी यादों का सामान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तेरी यादों का सामान अभी भी पड़ा है मेरे पास
    जो दिलाता है तेरे करीब होने का अहसास।
    कुछ मुस्कुराहटें जो दिल में घर कर गई,
    और कुछ चाहतें जो मुझे पागल कर गई।

    तुझसे जुड़े हुए कुछ हंसी लम्हें प्यार भरे
    कुछ लफ्ज़ तेरे होठों से निकले इकरार भरे
    कुछ बातें जो अपनेपन का अहसास दिलाती
    कुछ मुलाकातें जो तेरे दिल के पास ले जाती।

    किताबों में दबे हुए कुछ सूखे हुए गुलाब
    जिनमें तेरी खुशबू अभी भी महक रही है।
    दराजों में पड़े हुए कुछ रेशमी रुमाल,
    जिसमें तेरे स्पृश की आभा चमक रही है।

    ऐसे ही साहिब,और भी बहुत से नजराने हैं,
    कुछ जागती रातें और कुछ दिन के खजाने है

    कसमें वादे और तेरे विश्वास की चादर
    आज भी बैठा है ये दिल ओढ़ कर
    एक ख्वाब अधूरा सा हो तुम जैसे कोई
    चाह कर भी न भूलाना चाहे जिसको
    इन्हें देखकर मैं तेरे होने का अहसास कर लेती हूं।
    और पलकें नम करके दिल को हल्का कर लेती हूं।
    थोड़ा सा जी लेती हूं और थोड़ा सा मर लेती हूं।

    सुशी सक्सेना

  • गुरु पूर्णिमा पर दोहे -बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

    गुरु पूर्णिमा पर दोहे -बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

    महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं

    doha sangrah
    कविता संग्रह

    बनिए गुरु तब मीत

    द्रोण सरीखे गुरु बनो,भली निभाओ रीत।
    नहीं अँगूठा माँगना, एकलव्य से मीत।।

    एकलव्य की बात से, धूमिल द्रोण समाज।
    कारण जो भी थे रहे, बहस न करिए आज।।

    परशुराम से गुरु बनो, विद्यावान प्रचंड।
    कीर्ति सदा भू पर रहे, हरिसन तजे घमंड।।

    गुरु चाणक्य समान ही,कर शासक निर्माण।
    अमर बनो स्व राष्ट्रहित, कर काया निर्वाण।।

    वालमीकि से धीर हो, सिय पाए विश्राम।
    लव कुश घोड़ा रोक दें, करें प्रशंसा राम।।

    दास कबीरा की तरह, बनना गुरु बेलाग।
    ज्ञानी अक्खड़ भाव से, नई जगा दे आग।।

    गुरु नानक सा संगठन, सत्य पंथ आचार।
    देश धरा हित त्याग में, करना नहीं विचार।।

    तुलसी जैसी लेखनी, कालिदास सा ज्ञान।
    सूरदास सा प्रेम रस, तब कर ले गुरु मान।।

    मीरा और रैदास सी, अविचल भक्ति सुजान।
    गुरु वशिष्ठ से भाग्य ले, गुरुवर बनो महान।।

    तिलक गोखले सा हृदय,रखना आप हमेश।
    देश हितैषी कर्म हो, बनिए गुरु परमेश।।

    रामदेव सा योग कर, तानसेन से गीत।
    शर्मा बाबू लाल तुम, बनिए गुरु तब मीत।।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा,विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा,राजस्थान

  • सावन का चल रहा महीना – उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    सावन का चल रहा महीना

    sawan par kavita
    वर्षा ऋतु विशेष कविता

    सपने अब साकार हो रहे, जो थे कब से मन में पाले
    सावन का चल रहा महीना, देखो सबने झूले डाले।
    पत्थर पर जब घिसा हिना को, फिर हाथों पर उसे लगाया
    निखरी सुंदरता इससे तब, रंग यहाँ जीवन में छाया
    हरियाली तीजों पर मेला, किसके मन को यहाँ न भाया
    आयोजन हर साल हो रहे, सबने ही आनंद उठाया

    खूब सजे- सँवरे हैं अब सब,चाहे गोरे हों या काले
    सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

    अपनी मम्मी साथ तीज पर, आई है जो लगे सुहानी
    छोटी सी प्यारी नातिन पर, लाड़ दिखाएँ नाना- नानी
    होता है इतना कोलाहल, रिमझिम बरस रहा है पानी
    पेड़ों पर झूले में सखियाँ, लगती हैं परियों की रानी

    रंग चढ़ा बुड्ढे- बुढ़ियों पर,झूम रहे बनकर मतवाले
    सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

    वातावरण सलोना इतना, किसको समझें यहाँ पराया
    रूठ गया हो जिसका अपना, उसको उसने आज मनाया
    मन में उमड़ा प्यार सभी के, दूर हुआ नफरत का साया
    भोले बाबा की महिमा से, ऐसा समय लौटकर आया

    होते अब भंडारे इतने, नहीं कहीं रोटी के लाले
    सावन का चल रहा महीना,देखो सबने झूले डाले।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा०- 98379 44187

    (सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • आहट पर कविता – विनोद सिल्ला

    आहट पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सिंहासन खतरे में
    हो ना हो
    सिंह डरता है हर आहट से

    आहट भी
    प्रतीत होती है जलजला
    प्रतीत होती है उसे खतरा
    वह लगा देता है
    ऐड़ी-चोटी का जोर
    करता है हर संभव प्रयास
    आहटों को रोकने का

    अंदर से डरा हुआ
    ताकतवर हो कर भी
    डरता है बाहर की
    हर आहट से

    मान लेता है शत्रु
    तमाम अहिंसक व शाकाहारी
    निरिह जानवरों को

    करता है ताउम्र मारकाट
    मारता है निरिह जानवरों को
    ताकि खतरे से बाहर
    रहे उसका सिंहासन ।

    विनोद सिल्ला©

  • अश्रु नीर नयन के – हेमलता भारद्वाज डॉली

    अश्रु नीर नयन के

    अश्रु नीर नयन के - हेमलता भारद्वाज डॉली
    HINDI KAVITA || हिंदी कविता

    अश्रु नयन के सूख गए अब ,
    छोड़ दिया है हमने क्योंकि ,
    सोचना ज्यादा अब l
    *बचपन में रोए बहुत ,
    रो-रो कर भरे नयन ।
    दूर की सोच बनाते थे जब,
    देता नहीं था साथ कोई तब,
    हर तरफ से डांट डपट,
    भरता रहता गुबार सब l
    *भरते -भरते मन के अंदर,
    हुआ समंदर “डाली “अश्रु जल जब,
    फूट पड़ी धाराएं इत-उत ,
    फिर मिला एक हमको ,
    आत्मविश्वास का सबब l
    छोड़ पीछे नीर नयन के
    हो हर्षित पुलकित,
    सुनते सबका,
    करते मनका ,
    प्रफुल्लित रहते सदा अब l
    हेमलता भारद्वाज “डॉली”😊🙏🌹