समय पर कविता

समय पर कविता समय के पाससमय नहीं हैकि थोड़ी देर रुकेतुम्हारे लिए अच्छा होगाकि तुम भी न रूकोचलते रहोसमय के साथ रुकने वालों काकोई संवाद नहीं होताकोई कहानी नहीं होतीकोई…

पेड़ होती है स्त्री पर कविता

स्त्री पर कविता poem on trees जीवन भरचुपचापसहती हैउलाहनों के पत्थरऔरदेती हैआशीषों की छाँह बड़ी आसानी सेकाटो तो कट जाती हैजलाओ तो जल जाती हैआपके हितों के लिएईंधन की तरह…

जगत नाथ जगदीश पर दोहा

जगत नाथ जगदीश पर दोहा

  1. दोहा – जगत नाथ जगदीश है
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    (१)
    जगत नाथ जगदीश है,जग के पालनहार।
    जन्म लिए संसार में,हरने को भू – भार।।

                        (२)
    हृदय लगाकर पूजना,करके पावन कर्म।
    देवों का आशीष पा,सदा निभाना धर्म।।

    (३)
    मानव जीवन सार है,सब जन्मों में श्रेष्ठ।
    जिसकी जैसी भावना,पाता वहीं यथेष्ठ।।

    (४)
    शांत रहे जो निज हृदय,तब सुख का भंडार।
    जब पूजों भगवान को,चलकर आता द्वार।।

                       (५)
    पूर्ण हुई इच्छा सभी,आ जगदीश्वर धाम ।
    रहते हैं अब ध्यान में,प्रभुवर आठोंयाम।।

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    रचनाकार डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पिपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    मो. 8120587822

दीप पर कविता

दीप पर कविता

ओ दीप ! तुझे मन  टेर रहा है ।

प्यासे  मृग-सी  अँखियाँ  लेकर

पवन-पथिक को चिट्ठियाँ देकर

पथ   भटके   बंजारे   के   ज्यों

पल-पल   रस्ता   हेर   रहा   है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

देख  प्राण  को  निपट अकेला

लगा   झूमने  दुख    का  मेला

बरसूँगा  नित  पलक-धरा  पर

आँसू    माला   फेर    रहा   है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

तुझ बिन प्रियतम  घोर अँधेरा

कारागृह-सा     जीवन    मेरा

थका हुआ यह साँस का पंछी

कर   पर  दीप  उकेर  रहा  है ।

ओ दीप ! तुझे  मन  टेर रहा है ।

०००

अशोक दीप

जयपुर

प्रधानमंत्री पर कविता

प्रधानमंत्री पर कविता प्यारे बच्चों ! सुप्रभातकल प्रधानमंत्री जीआप लोगों के साथ सीधे वार्तालाप करेंगेआप अनुशासित रहेंगेमतलब इधर-उधर नहीं देखेंगेअपने से कुछ भी नहीं बोलेंगेप्रधानमंत्री जी की बातों पर कोई…

मेरी और पत्नी पर कविता

मेरी और पत्नी पर कविता - 30.04.2022 मेरी पत्नी दोपहर बादअक़्सर कुछ खाने के लिएमुझे पूछती हैमैं सिर हिलाकरसाफ मना कर देता हूँमेरे मना करने सेउसे बहुत बुरा लगता हैकि…

क्रोध पर कविता

क्रोध पर कविता मुझे नहीं पतापहली बारमेरे भीतरकब जागा था क्रोधशुरूआत चिनगारी-सी हुई होगीआज आग रूप मेंसाकार हो चुकी हैफिर भी इतनी भीषण नहीं हैकि अपनी आंच से किसी को…

यह ज़िन्दगी पर कविता

यह ज़िन्दगी पर कविता रंगीन टेलीविजन-सी यह ज़िन्दगीलाइट गुल होने परबंद हो जाती है अचानककाले पड़ जाते हैं इसके पर्देबस यूँ ही--अचानक थम जाती हैहमारी उम्रऔर थम जाते हैंजीवन और…

बताइये आप कौन हैं

बताइये आप कौन हैं कुछ लोग हामी भरने मेंबड़े माहिर होते हैंपर काम कुछ भी नहीं करतेउनके मुख से हमेशानिकलता है हाँ-हाँ-हाँइनके शब्दकोश में 'ना' शब्द नहीं होताये कभी ना…