Author: कविता बहार

  • मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    छंद


    विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l

    उदाहरण :
    विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी,
    आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l
    मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी,
    जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l

    – ओम नीरव

  • आम फल पर बाल कवितायेँ

    यहाँ पर आम फल पर 3 कवितायेँ प्रस्तुत हैं जो कि बाल कवितायेँ हैं

    आम फल पर बाल कवितायेँ

    नाम मेरा आम

    नाम मेरा आम है,
    हूं फिर भी खास।
    खाते मुझको जो,
    पा जाते है रास।

    रूप मेरे है अनेक,
    सबके मन भाता।
    देख देख मुझे सब,
    परमानंद को पाता।

    घर घर मेरी शाख,
    बनता हूं आचार।
    लू में सिरका बनूँ,
    दे शीतल बयार।

    खट्टे मीठे स्वाद है,
    मुह में पानी लाते।
    खाते बच्चे चाव से,
    इत उत है इठलाते।

    तोषण कुमार चुरेन्द्र”दिनकर “
    धनगांव डौंडीलोहारा
    बालोद छत्तीसगढ़

    आम-फलों का राजा

    मैं फलों का राजा हूंँ,
    कहते हैं मुझको आम।
    मुँह में पानी आ जाता,
    लेते ही मेरा नाम।।

    बनता हूंँ चटनी अचार,
    जब मैं कच्चा रहता।
    वाह बड़ा मजा आया,
    जो खाता वह कहता।

    गर्मी में शर्बत मेरा,
    तन को ठंडक पहुँचाता।
    लू लगने से भी मैं ही,
    सब लोगों को बचाता।।

    पीले पीले रसीले आम,
    सबका मन ललचाते।
    चूस चूस कर बड़े मजे से,
    बच्चे बूढ़े सब खाते।।

    मैं खास से भी खास हूं,
    कहते हैंं पर मुझको आम।
    राजा प्रजा सब खायें,
    देकर मुँहमाँगा दाम।।

    प्यारेलाल साहू मरौद

    मैं आम हूँ

    मैं हूँ आम कभी खट्टा
    तो कभी में शहद सा
    मीठा मीठा मेंरास्वाद
    दिखता मैं हरा पिला,

    मेरे नाम अनेक है
    दशहरी,लगड़ा,बादामी
    आदि बच्चे, बुढे सभी
    को भाता हूँ मैं आम,

    मुरब्बा,पन्ना,आम रस,
    अचार घर घर मे बनता
    है आम मैं कच्चा पक्का
    आता हूँ काम हमेशा,

    गर्मी में राहत देता
    हर दिल अज़ीज
    देता सबको सुकून
    मैं हूँ प्यारा सा आम।

    मीता लुनिवाल
    जयपुर, राजस्थान

  • सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक] कैसे लिखें

    सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक]

    विधान – 11,13,11,13 मात्रा की चार चरण , सम चरणों के अंत में वाचिक भार 12 (अपवाद स्वरुप 12 2 भी), विषम चरणों के अंत में 21 अनिवार्य, सम चरणों के प्रारंभ में ‘मात्राक्रम 121 का स्वतंत्र शब्द’ वर्जित, विषम चरण तुकांत जबकि सम चरण अतुकांत l

    छंद
    छंद

    विशेष – दोहा छंद के विषम और सम चरणों को परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बन जाता है ! इसप्रकार अन्य लक्षण दोहा छंद के लक्षणों से समझे जा सकते हैं l

    उदाहरण :
    चरण बदल दें आप,
    दोहा में यदि सम-विषम,
    बदलें और न माप,
    बने सोरठा छंद प्रिय l

    – ओम नीरव

  • शबरी (अनुगीत छंद) – बाबू लाल शर्मा

    अनुगीत छंद

    विधान– २६ मात्रा प्रति चरण
    चार चरण दो-दो समतुकांत हो
    १६,२६ वीं मात्रा पर यति हो
    चरणांत लघु १ हो।

    छंद
    छंद

    शबरी अनकही कहानी…सी

    त्रेता युग अन कही कहानी, सुनो ध्यान धर कर।
    बात पुरानी नहीं अजानी, कही सुनी घर घर।
    शबरी थी इक भील कुमारी, निर्मल सुन्दर तन।
    शुद्ध हृदय मतिशील विचारी,रहती पितु घर वन।

    बड़ी भई मात पितु सोचे, सुता ब्याह जब तब।
    ब्याह बरात रीति अति पोचा, नही सहेगी अब।
    मारहिं जीव जन्तु बलि देंही, निर्दोषी का वध।
    शबरी जिन प्रति प्रीत सनेही, कैसे भूले सुध।

    गई भाग वह कोमल अंगी, डोल छिपे तरु वन।
    वन ऋषि तपे जहाँ मातंगी, भजते तपते तन।
    ऋषि मातंगी ज्ञानी सागर, शबरी सेवा गुण।
    शबरी में ऋषिआयषु पाकर,भक्ति बढ़े सदगुण।

    मिले राम तोहिं भक्ति प्रवीना, मातंगी ऋषि घर।
    ऋषि वरदान यही कह दीना, शबरी के हितकर।
    तब से नित वह राम निहारे, पूजन करे भजन।
    प्रतिदिन आश्रम स्वच्छ बुहारे, ऐसी लगी लगन।

    कब आ जाएँ राम दुवारे, वह पल पल चिंतित।
    फूलमाल सब साज सँवारे,कमी रहे कब किंचित।
    राम हेतु प्रतिदिन आहारा, लाए वह ऋतु फल।
    लाती फल चुन चखती सारे, शबरी भाव विमल।

    एहि विधि जीवन चलते शबरी, बीत रहा जीवन।
    कब आए प्रभु राम देहरी, तकते थकती तन।
    प्रतिदिन जपती प्रीत सुपावन, आओ नाथ अवध।
    बाट जोहती प्रभु की आवन, बीती बहुत अवधि।

    जब रावण हर ली वैदेही, व्याकुल बंधु युगल।
    रामलखन फिर खोजे तेंही, वन मे फिरे विकल।
    तापस वेष खोजते फिरते, माया पति सिय वन।
    वन मृग पक्षी आश्रम मिलते, पूछ रहे प्रभु उन।

    आए राम लखन दोऊ भाई, शबरी वाले वन।
    शबरी सुन्दर कुटी छवाई, सुंदर मन छावन।
    शबरी देख चकित वे भारी,पुलकित मनोविकल।
    राम सनेह बात विस्तारी, शबरी सुने अमल।

    छबरी भार बेर ले आती, भूख लगी प्रभुवर।
    चखे मीठ वे रामहिं देती,स्वागत अतिथि सुमिर।
    नित्य सनेहभक्ति शबरी वे, उलझे प्रभु चितवन।
    खाए बेर राम बहु नीके, चकित भाव लक्ष्मन।

    शबरी प्रेम भक्ति आदर्शी, पाई चरण शरन।
    राम सदा भक्तन समदर्शी, महि धारी लक्ष्मन।
    भाव प्रेम मय शुद्ध अचारे, शबरी शुभ जीवन।
    जाति वर्ग कुल दोष निवारे, प्रभु के पद पावन।
    . ______
    ✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा, *विज्ञ*
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
    Pin. ३०३३२६
    Mob.no. ९७८२४४७९

  • आम और तरबूजा बाल कविता

    आम और तरबूजा बाल कविता

    आम और तरबूजा बाल कविता

    कहा आम तरबूजे से
    सुन लो मेरी बात
    फलों का राजा आम मैं
    तेरी क्या औकात
    गांव शहर घर-घर में मेरी
    सबमें है पहचान
    बड़े शान से बच्चे बूढ़े
    करते खूब बखान
    अमृतफल फलश्रेष्ट अंब
    आम्र अनेकों नाम
    लंगड़ा चौसा दशेहरी
    रूपों से संनाम
    स्वादों में अनमोल मै
    मिलता बरहो मांस
    शादी लगन बरात में
    रहता हूं खुब खास
    कच्चा पक्का हूं उपयोगी
    सिरका बने आचार
    लू लगने पर मुझसे होता
    गर्मी में उपचार।
    सुनते सुनते खरबूजे ने
    जोड़ा दोनों हाथ
    तुम्ही बड़े हो मैं छोटा हूं
    आओ बैठो साथ
    एक बात मेरी भी सुन लो
    मैं भी फलों में खास
    चलते रस्ते में राही का
    मै बुझाता प्यास
    कुदरत का भी खेल निराला
    उगता हूं मैं रेत
    प्यासे का तो प्यास बुझाता
    भर भी देता पेट
    सबका अपना गुण है भाई
    सबका अपना काम
    नहीं किसी से कोई कम है
    सबका है सम्मान।


    रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर।