जुल्मी अगहन पर कविता / शकुन शेंडे
बचेली
जुल्मीअगहन जुलुम ढाये री सखी, अलबेला अगहन!शीत लहर की कर के सवारी, इतराये चौदहों भुवन!! धुंध की ओढ़नी ओढ़ के धरती, कुसुमन सेज सजाती।ओस बूंद नहा किरणें उषा की, दिवस मिलन सकुचाती।विश्मय सखी शरमाये रवि- वर, बहियां गहे न धरा दुल्हन!!जुलूम….. सूझे न मारग क्षितिज व्योम- पथ,लथपथ पड़े कुहासा।प्रकृति के लब कांपे-न बूझे,वाणी की … Read more