दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”द्वारा रचित
दैव व दानवों की वृत्तियां/ पुष्पा शर्मा “कुसुम”
कंटक चुभकर पैरों में
अवरोधक बन जाते हैं,
किन्तु सुमन तो सदैव ही
निज सौरभ फैलाते हैं।
बढा सौरभ लाँघ कंटक
वन उपवन और वादियाँ,
हो गया विस्तार छोड़कर
क्षेत्र धर्म और जातियाँ।
धरा के अस्तित्व से चली
दैव व दानवों की वृत्तियां,
ज्ञान का ले सहारा मनुज
सुलझाता रहता गुत्थियां।
सदियों से प्रयास करते
आ रहे प्रबुद्धजन जग में,
ज्ञान का आलोक दिखाते
शान्ति हो जाये भुवन में।
सद्ग्रंथ ज्ञान विवेक सागर
सत्पुरुष जीवन आचरण ,
किन्तु मनुज विवेक पर ही
छाया मूढता का आवरण ।
पर सत्पथ पर बढने की
जिसने भी मनमें ठानी है,
अवरोध मार्ग के हटे सभी
रहा साथ ईश वर दानी है।
पुष्पा शर्मा “कुसुम”