Author: कविता बहार

  • दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा “कुसुम”द्वारा रचित

    दैव व दानवों की वृत्तियां /पुष्पा शर्मा "कुसुम"

    दैव व दानवों की वृत्तियां/ पुष्पा शर्मा “कुसुम”

    कंटक चुभकर पैरों में
    अवरोधक बन जाते हैं,
    किन्तु सुमन तो सदैव ही
    निज सौरभ फैलाते हैं।

    बढा सौरभ लाँघ कंटक
    वन उपवन और वादियाँ,
    हो गया विस्तार छोड़कर
    क्षेत्र धर्म और जातियाँ।

    धरा के अस्तित्व से चली
    दैव व दानवों की वृत्तियां,
    ज्ञान का ले सहारा मनुज
    सुलझाता रहता गुत्थियां।

    सदियों से प्रयास करते
    आ रहे प्रबुद्धजन जग में,
    ज्ञान का आलोक दिखाते
    शान्ति हो जाये भुवन में।

    सद्ग्रंथ ज्ञान विवेक सागर
    सत्पुरुष जीवन आचरण ,
    किन्तु मनुज विवेक पर ही
    छाया मूढता का आवरण ।

    पर सत्पथ पर बढने की
    जिसने भी मनमें ठानी है,
    अवरोध मार्ग के हटे सभी
    रहा साथ ईश वर दानी है।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद / पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’ द्वारा रचित

    virah viyog bewafa sad women

    कहां गए हो छोड़कर आती हर पल याद/ पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

    कहाँ गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।
    घर का हर कोना हुआ,यादों से आबाद।

    चीख रहा है बैठका,रोती चौकी रिक्त।
    टिकी छड़ी दीवार से,देख नैन हों सिक्त।
    बेल वेदना उर बढ़े,मिले विरह की खाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    सदा बड़ों को मान दो,अरु छोटों को प्यार।
    जीवन में हो सादगी,ऊँँचे रखो विचार।
    यही सिखाया आपने,समय न कर बर्बाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    धूल किताबें फाँकतीं,अलमारी में मौन।
    तितर-बितर टेबल पड़ा,उसे सजाए कौन।
    तुम बिन दिखती गाय की,तबीयत है नाशाद।
    कहां गए हो छोड़कर,आती हर पल याद।।

    पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’
    असिस्टेंट प्रोफेसर

    (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश)
    मोबाइल नंबर-8604112963

  • पर्यावरण दिवस पर चौपाई/ बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’

    पर्यावरण दिवस पर चौपाई/ बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’

    पर्यावरण दिवस पर चौपाई

    save nature

    बच्चे – बूढ़े सुन लो भाई,
    पेड़ों की मत करो कटाई।
    वृक्षों से मिलती है छाया,
    गर्मी में हो शीतल काया।

    सबने इनकी महिमा गाई,
    मिलते हैं फल-फूल दवाई।
    पेड़ों से ही वर्षा आती,
    सब के मन को यह हर्षाती।

    बात सभी को यह समझाना,
    एक-एक को पेड़ लगाना।
    मिलकर सारे पेड़ लगाओ,
    भारत भू को स्वच्छ बनाओ।



    *बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’*

  • 5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    5 जून अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस छत्तीसगढ़ी गीत

    save nature


    पेड़ हमर तो संगी साथी,
    पेड़ हमर आय जान।
    जीव जंतु सबो के आसरा,
    पेड़ आय ग भगवान।।

    डारा पाना अउ जड़ी सबो,
    आथे अबड़ दवाई।
    जीवन एखर बिन शून्य हे,
    होथे बड़ सुखदाई।

    देथे दाई असन मया जी,
    सुख के एहर खदान।
    पेड़ हमर……



    जियत मरत के नाता रिस्ता,
    जोरे हन हम भाई।
    आठो बेरा ताकत हमरो,
    चाहे हमर भलाई।

    जिनगी के सुख हावय सबो,
    करत मानव कल्यान।
    पेड़ हमर……..

    बरसा लावय सुख बगरावय,
    सुख के लिखय कहानी।
    नदिया नरवा औ चारो कोती,
    अगला उछला पानी।

    धरती  के  सिंगार  पेड़ हे,
    जिइसे गहना समान।
    पेड़ हमर……



    घाम-छाँव दे मया मयारू,
    देत हवा अउ पानी।
    धान,गहूँ आनी बानी के,
    खेती करत किसानी।

    एखर से जीवन के किस्सा,
    एखर किस्सा महान।
    पेड़ हमर…….



    खातू ,माटी ,पान पताई,
    सर के बनथे जानव।
    सुख-दुख के ए संगी साथी,
    भाई अइसन मानव।

    चले रोज घर के जी चूल्हा,
    भाई संझा बिहान।
    पेड़ हमर..

    परमेश्वर अंचल

  • पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    पर्यावरण संकट

    पर्यावरण संकट-माधवी गणवीर

    जीवन है अनमोल, 
    सुरक्षित कहां फिर उसका जीवन है,
    प्रक्रति के दुश्मन तो स्वयं मानव है,
    हर तरफ प्रदूषण से घिरी हमारी जान हैं,
    फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।

    मानव हो मानवता का 
    कुछ तो धरम करो,
    जीवन के बिगड़ते रवैय्ये का 
    कुछ तो करम करो
    चारो ओर मचा हाहाकार है
    प्रदूषण का डंका बजा है।
    वायु, मर्दा, ध्वनि जल
    सब है इसके चपेट में।
    ये सुरक्षित तो सुखी हर इंसान है।
    हर तरफ प्रदूषण से घिरी जान है ।
    फिर भी हर वक्त ……..

    दूर-दूर तक फैली थी हरियाली,
    जिससे मिलती थी खुशहाली,
    धड़ल्ले से कटते वन,जंगल सारे,
    हरियाली का चारो तरफ तेजी से उठान है,
    बिना वृक्ष के जीवन कैसा विरान है।
    फिर भी हर वक्त ……

    नदियां की थी पावन धारा
    मानव ने ही दूषित किया सारा,
    जल जीवन के संकट से,
    कैसे उभरे इसके कष्ट से,
    आओ ढूढे इसके कारण 
    जिससे मानव जीवन ही परेशान है।
    फिर भी हर वक्त बने हम कितने नादान है।

    माधवी गणवीर
    राजनादगांव
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद