Author: कविता बहार

  • बाबा साहिब सा सूरमा–राकेश राज़ भाटिया

    बाबा साहिब सा सूरमा–राकेश राज़ भाटिया

    बाबा साहिब सा सूरमा -राकेश राज़ भाटिया

    बदलती रहेगी यह दुनिया, बदलेगा यह दौर ए जहाँ .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सूरमा ..

    वो जिसने कक्षा के बाहर बैठकर ज्ञान का दीया जला लिया .
    वो जिसने अपनी मेहनत से, विद्या का सागर पा लिया .
    वो जिसने संविधान बनाकर बदल दिया विकराल समा .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सूरमा ..

    वो न होता तो लोकतंत्र की बुनियादें कच्ची रह जाती .
    दलित और शोषित की मन में ही फरियादें रखी रह जाती .
    संविधान न करता प्रावधान तो समानता का मंजर होता कहाँ .
    न हुआ है न होगा कभी बाबा साहिब सा सुरमा ..

    dr bhimrao ambedkar
    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता



    वो अधिकार न दिलवाता अगर महिला कोई न पढ़ पाती .
    कोई इंदिरा फिर इस देश की प्रधानमंत्री न बन पाती .
    न किसी दलित की बेटी कभी पहुँच पाती विधान सभा .
    न हुआ है, न होगा कभी भी, बाबा साहिब सा सुरमा ..

    कितने राजा बने यहाँ इंसानों को गुलाम बनाकर .
    कितने सम्राट हुए यहाँ मजबूरों पर हुक्म चलाकर .
    पर वो बादशाह ऐसा था जिसने बनाया गुलामों को इंसां .
    न हुआ है,न होगा कभी भी, भीम राव सा सूरमा ..

    -राकेश राज़ भाटिया
    थुरल(काँगड़ा)
    हिमाचल प्रदेश

  • भगत सिंह पर कविता

    भगत सिंह पर कविता

    भगत सिंह


    28 सितंबर सन् 1907 को
    भारत की धरती पर,
    एक लाल ने जन्म लिया ।
    माता विद्यापति की
    आंखों का तारा ,
    पिता का अरमान था ।
    दादी ने उसका
    ‘भागो’ रखा नाम था,
    फौलादी थी बाहें उसकी ।
    जिसके सिर पर
    केसरिया बाना था ,
    दूर फिरंगी को करने का
    इरादा मन में ठाना था ।
    बांध कफन अपने सर पर
    सैंडर्स की हत्या की ,
    दिल्ली केंद्रीय मंत्रालय में
    बम विस्फोट की घटना की ।
    गद्दार फिरंगी के खिलाफ
    खुले विद्रोह को बुलंदी दी ,
    राजगुरु ,सुखदेव के साथ
    फांसी की सजा हुई ।
    फांसी की रस्सी को
    हिंदे वतन का हार समझ ,
    सो गया जय हिंद का उद्घोषक,
    अमरत्व उसको प्राप्त हुआ।
    नाज़ शहीद-ए-आजम पर
    नाज पंजाब की धरती पर
    जिसने वीर सपूत को जन्म दिया।
    जब तक भारत की धरती पर
    सूरज और चांद रहेगा ,
    अमर रहेंगे भगत सिंह
    अमर उनका नाम रहेगा।

    चारूमित्रा

  • प्राकृतिक आपदा पर कविता

    प्राकृतिक आपदा पर कविता

    नदी

    कहीं कहीं सूखा कहीं,
    बाढ़ की विभीषिका है।
    कहीं पर जंगलों में ,
    आग है पसरती।

    कहीं ज्वालामुखी कहीं,
    फटते है बादल तो।
    कहीं पे भूकम्पनों से,
    शिला है दरकती।

    तेज धूप कहीं कहीँ,
    लोग भूखे मरे कहीं।
    पेड़ों की कमी से आँधी,
    घर है उजारती।

    कहीं ठिठुरन बस,
    बेहताशा लोग मरे।
    कहीं तीव्र धूप बस,
    बरफ़ पिघलती।

    कहीं पानी बिन देखो,
    पड़ता अकाल भाई।
    लहरें समुद्र कहीं,
    सुनामी उफनती।

    जाने ऐसी बुद्धि काहे,
    लोग तो लगा रहे हैं।
    जिसके कारन अब,
    आपदा पसरती।

    बुद्धिमान होना भी तो,
    जरूरी है सबको ही।
    कुबुद्धि विकास की है,
    चुहिया कतरती।

    यदि हमें अपनी ब,
    चानी आगे पीढ़ियाँ तो।
    बुद्धिमता बस तुम,
    बचा लो यह धरती।

    ★★★★★★★★★★★
    अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
    ★★★★★★★★★★★

  • राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर कविता

    राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर कविता

    “बापू” ( राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी पर कविता )

    mahatma gandhi
    mahatma ghandh


    सत्य अहिंसा के तुम ही पहरेदार हो बापू,
    आजादी दिलाने वाले बड़े सरदार हो बापू।


    हर बच्चा तुम्हें दिन रात याद करता है,
    हर इंसा तुम्हारा ही गुणगान करता है।
    सच्ची श्रद्धा से ही मिलती है सफलता,
    हर इस कामयाबी का बखान करता है।
    आजादी दिलाने के सही हकदार हो बापू।


    देश प्रेम की भावना कोई तुमसे सीखे,
    कुछ कर गुजरने की तड़प तुमसे सीखे।
    सत्य अहिंसा की डगर पर ही चलकर,
    अपने हक़ के लिए लड़ना तुमसे सीखे।
    हर देशवासी के लिए पेड़ छायादार हो बापू।


    के तुम आन,बान, शान की हो निशानी,
    देश को आजाद करने की दिल में ठानी।
    आजादी दिलाके, गुलामी से मुक्त कराया,
    अंग्रेजों की झूठी बात तुमने नहीं मानी।
    देश भक्ति में डूबे तुम सच्चे किरदार हो बापू।


    अपने लिए कुछ भी नहीं किया भला,
    देश के लिए ही तुमने सब कुछ किया।
    त्याग,बलिदान की हो तुम एक मूरत,
    आजादी दिलाने का बस काम किया।
    आजादी की कहानी लिखी वो कलमकार हो बापू।

    नदीम सिद्दकी, राजस्थान

  • छीन लिए सब गड़े दफीने

    छीन लिए सब गड़े दफीने

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    धरा गाल हँसते हम देखे,
    जल कूपों मय चूनर धानी।
    घाव धरा तन फटी बिवाई
    मानस अधम सोच क्यूँ ठानी।।

    शस्य श्यामला कहते जिसको
    पैंड पैंड पर पेड़ तलाई
    शेर दहाड़ें, चीतल हाथी
    जंगल थी मंगल तरुणाई

    ग्रहण लगा या नजर किसी की,
    नूर गये माँ लगे रुहानी
    धरा गाल हँसते ……….।।

    वसुधा को माता कह कह कर
    छीन लिए सब गड़े दफीने
    श्रम के साये ढूँढ रहे अब
    छलनी हो नद पर्वत सीने

    कैसे कब तक सह पाएगी
    धरा मनुज की यह मनमानी
    धरा गाल हँसते…….,।।

    गला घोटते सरिताओं का
    बाँध बना जल कैद किया है
    कंकर रेत निकाल गर्भ से
    पर्वत पर्वत चीर दिया है

    धरा रक्त को चूस बहाया
    रहा नही आँखों में पानी
    धरा गाल हँसते….।।

    तन के सब शृंगार उतारे
    वन तरु वनज वन्य भी नाशे
    ताप कार्बन भूत जिन्द सम
    शाह बने वसुधा पर हासे

    कंकरीट के जंगल हँसते
    लिखते भू पर नाश कहानी
    धरा गाल हँसते …..।।

    घाव बने नासूर हजारों
    फोड़े रोम रोम को छेदे
    धूम्र प्रदूषण राकेटों से
    ओजोन कवच मानव भेदे

    घावों पर मल्हम लगवाए,
    कौन पूत भू हित सिर दानी।
    धरा गाल हँसते ……….।।
    . ????
    बाबू लाल शर्मा, विज्ञ
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान