आत्मसम्मान पर कविता

kavita

आत्मसम्मान पर कविता

बीच चौराहे बेइज़्ज़त हुआ
क्या मेरा आत्मसम्मान नही था
पलट के देता उत्तर मैं भी
पर दोनो के लिए कानून सामान नहीं था
वो मारती गई , में सहता गया
क्या गलती है मेरी दीदी ये मैं कहता गया
वो क्रोध की आग में झुलस रही थी
नारी शक्ति का सहारा लेकर मचल रही थी
अगर कानून दोनो के लिए एक जैसा होता
फिर बताता तुझे आत्मसम्मान खोना कैसा होता।

अदित्य मिश्रा
दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
9140628994

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