आत्मसम्मान पर कविता
बीच चौराहे बेइज़्ज़त हुआ
क्या मेरा आत्मसम्मान नही था
पलट के देता उत्तर मैं भी
पर दोनो के लिए कानून सामान नहीं था
वो मारती गई , में सहता गया
क्या गलती है मेरी दीदी ये मैं कहता गया
वो क्रोध की आग में झुलस रही थी
नारी शक्ति का सहारा लेकर मचल रही थी
अगर कानून दोनो के लिए एक जैसा होता
फिर बताता तुझे आत्मसम्मान खोना कैसा होता।
अदित्य मिश्रा
दक्षिणी दिल्ली, दिल्ली
9140628994