Author: कविता बहार

  • मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़

    मत करो प्रकृति से खिलवाड़-दीप्ता नीमा
    हसदेव जंगल

    मत काटो तुम ये पहाड़,
    मत बनाओ धरती को बीहाड़।
    मत करो प्रकृति से खिलवाड़,
    मत करो नियति से बिगाड़।।1।।


    जब अपने पर ये आएगी,
    त्राहि-त्राहि मच जाएगी।
    कुछ सूझ समझ न आएगी,
    ऐसी विपदाएं आएंगी ।।2।।


    भूस्खलन और बाढ़ का कहर,
    भटकोगे तुम शहर-शहर।
    उठे रोम-रोम भय से सिहर,
    तुम जागोगे दिन-रात पहर।।3।।


    प्रकृति में बांटो तुम प्यार,
    और लगाओ पेड़ हजार।
    समझो इनको एक परिवार,
    आगे आएं हर नर और नार।।4।।


    पर्यावरण असंतुलित न हो पाए,
    हर लब यही गीत गाए।
    धरती का स्वर्ग यही है,
    पर्यावरण संतुलित यदि है।।5।।


    निर्मल नदिया कलकल बहता पानी,
    कहता है यही मीठी जुबानी।
    धरती का स्वर्ग यही है,
    पर्यावरण संतुलित यदि है।।6।।


    ।।।। दीप्ता नीमा ।।।।

  • प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन-तबरेज़ अहमद

    प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन-तबरेज़ अहमद

    प्रकृति से खिलवाड़ पर्यावरण असंतुलन

    पर्यावरण संकट

    शज़र के शाखो पर परिंदा डरा डरा सा लगता है।
    ऐसी भी क्या तरक्की हुई है मेरे मुल्क में।
    कई शज़र के शाखाओं को काटकर और कई शज़र को उजाड़ कर शहर का शहर बसा लगता है।
    इन पर्यावरण को उजाड़ कर शहर बसा लगता है।
    फिर भी कहा दिल लगता है।
    कभी प्रकृति की गोद में मां के आंचल सा सुकून मिलता था।
    आज जलन और चुभन होती है इस फिज़ा में भी।
    कही ना कही हमने प्रकृति से खेला है।
    जो आज हर चीज़ होने के बावजूद भी फिजाओं में कोई सुकून नही है।
    जो ज़हर हमने इस पर्यावरण में घोला है।
    उसी का आज हमने ओढ़ा आज चोला है।
    जल रही धरती जल रहा आकाश भी
    इसलिए आज हम है निराश भी।
    कभी जो उमड़ते थे बादल।
    दिल हो जाता था पागल।
    ना अब बादल का उमंग है
    और ना ही पहले जैसा फिज़ा में रंग है।
    किया जो अपनी पृथ्वी से ऐसा हमने अपंग है।
    पहले बारिश होती थी तो दिल झूमता था।
    मगर अब निगाहे तरसती है कुछ न कुछ तो किया हमने खिलवाड़ है।
    एक एक जन इसका गुनहगार है।
    गांव को हमने छोड़ा शहर के लिए, के गांव को शहर बनाएंगे।
    हालत ऐसी हुई है के ज़माने से कहते फिर रहे है शहर से अच्छा तो मेरा गांव है।
    तरक्की के दौड़ में हमने जो पेड़ो को काटा है।
    जंगल के जंगल को जो हमने छांटा है।
    हमने अपने भविष्य के लिए बोया कांटा है।
    विकासशील देश लगे है भाग दौड़ में विकसित देशों की बराबरी करने में।
    इस बराबरी करने की होड़ में हमने पृथ्वी पर ज़हर ही ज़हर घोला है
    इसलिए हमने बीमारियों को ओढ़ा चोला है।

    शज़र/पेड़, फिज़ा/पर्यावरण

    तबरेज़ अहमद
    बदरपुर नई दिल्ली

  • सर्वधर्म सार तत्व (दोहे)

    सर्वधर्म सार तत्व (दोहे)

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    बाइबिल नीतिवचन
    नीतिवचन से सीख लें, मोल महत्तम माप।
    बुद्धि स्वर्ण से उच्च है, सच पतरस की नाप।।

    बुद्धि
    बुद्धि क्षेत्र परिमाप को, दें इतना विस्तार।
    चाँदा घूमें नापने, जोड़ करें साकार।।

    यहोवा
    जन्म यहोवा को दिया, मरियम तारनहार।
    येरुशलम भूभाग पर, चरणी में अवतार।।
    कुरान

    आयतें
    अरज आयतें मानिए, कहता कर्म कुरान।
    मानवता का पाठ है, नियत रखें ईमान।।

    मुस्लिम
    अहद वहम् को तोड़ते, स्वार्थ परक अरमान।
    तज फसाद मुस्लिम पढ़ें, आयत के फरमान।।
    त्रिपिटक

    बुद्ध
    चरैवेति नित लक्ष्य ले, कर्म भावना शुद्ध।
    आत्म ज्ञान अर्जन किया, बोधि वृक्ष से बुद्ध।।

    सम्यक ज्ञान
    त्रिपिटक सम्यक ग्रंथ में, मूल मंत्र यह मित्र।
    वाणी दर्शन राखिये, चंचल चित्त चरित्र।।
    आगम

    पंचशील
    अपरिग्रह अस्तेय सह, सत्य अहिंसा मान।
    ब्रह्मचर्य है पाँचवा, जैन धर्म के ज्ञान।।

    महावीर
    तीर्थंकर चौबीसवें, राज भोग कर त्यक्त।
    तीस बरस की उम्र में, ज्ञानी मोह विरक्त।।
    वैदिक ग्रंथ

    वेद
    धर्म पुरातन विश्व में, वेद ऋचाएँ मर्म।
    कर्मठ जन कल्याण के, मूल मंत्र सत्कर्म।।

    ======03/03/2021=======

  • रामायण के पात्रों पर दोहा / ओमकार साहू

    रामायण के पात्रों पर दोहा / ओमकार साहू

    राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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    रामायण के पात्रों पर दोहा / ओमकार साहू

    1. *श्री राम*

    मर्यादा प्रतिबिंब श्री, राम चन्द्र अवधेश।
    रघुवर दीनानाथ का, अनुयायी यह देश।।

    2. *सीता*
    विषम काल में साथ दें, माँ सीता का ज्ञान।
    पति चरण को मानती, प्रथम पूज्य भगवान।।

    3. *लक्ष्मण*
    भ्रात प्रेम में लीन जो, सेवा का पर्याय।
    ज्येष्ठ नात हो राम सम, नहीं भ्रमण अभिप्राय।।

    4. *हनुमान*
    भक्त शिरोमणि पूजते, सर्वप्रथम हनुमान।
    दास कृपा श्री राम की, भक्त बने भगवान।।

    5. *भरत*
    राज्य संपदा त्याग के, साथ सगे के आप।
    नूतन कर दी स्थापना, भ्रात प्रेम परिमाप।।

    6 *दशरथ*
    सोच समझ कर दीजिए, शपथ वचन वरदान।
    लोभी लीला लालसा, अवनति की पहचान।।

    7 *कैकेयी*
    कुटिल मंथरा बोलती, साध सुखी निज स्वार्थ।
    मातु कलंकित जग भयी, लज्जित कर चरितार्थ।।

    8 *शबरी*
    माता शबरी भीलनी,अटल प्रेम के साथ।
    द्रवित प्रेम को देखकर, भावुक दीनानाथ।।

    9 *रावण*
    अतुलित बल अभिमान ले, छ्द्मी चाल चरित्र।
    अहंकार को तोड़ती, अबला आन पवित्र।।

    10 *विभीषण*
    लंकापति के राज में, बहुधा थे प्रतिकूल।
    राम भक्ति की भावना, अंक किया अनुकूल।।

  • भोर वंदन- नवनिर्माण करें

    भोर वंदन-नवनिर्माण करें

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    ====लावणी छन्दगीत 16,14 पदांत 2====

    सत्य सर्वदा अपनाएँ हम, न्योछावर निज प्राण करें।…
    राम राज्य आधार शिला ले,आओ नवनिर्माण करें।।…

    सत्य विकल तो हो सकता है, नहीं पराजय अंत मिले।
    झूठी चादर ओढ़े कलयुग, जयचंदों सह संत मिले।।
    कुपित मौलवी और पादरी, भ्रष्टाचारी पंत मिले।
    विषमय रक्त प्रवाहित होता, दंश मनुज के दंत मिले।।

    उदाहरण हम बन सामाजिक, जनहित में कल्याण करें।…
    राम राज्य आधार शिला ले,आओ नवनिर्माण करें।।…

    सद्भावों की करें कल्पना, सज्जनता पहचान रखें।
    चकाचौंध से परे रहें हम, साधारण परिधान रखे।।
    घने तिमिर को चीर बढ़ो तुम, लक्ष्य सदा संधान करें।
    बुद्ध विवेका अनुगामी हम, आशान्वित हैं संतान करें।।

    वेद ऋचाएँ पथ दिखलाते, अध्यन नित्य पुराण करें।…
    राम राज्य आधार शिला ले,आओ नवनिर्माण करें।।…

    पथिक सत्यपथ जो चलता है,धन्य प्रेरणा स्रोत बने।
    संत सुधारक पंथ अँधेरे, स्वयं जलाकर ज्योत बने।।
    तजें तामसिक दुर्गुण सारे, सत्य देहरी द्वार धरे।
    विषम क्षणों में अड़िग रहे हित, संदेशा संचार करे।।

    कर्म संगणक सच्चा भगवन, मूढ़ मृदुल निर्वाण करें।…
    राम राज्य आधार शिला ले,आओ नवनिर्माण करें।।…

    ==डॉ ओमकार साहू मृदुल 19.07.21==