Author: कविता बहार

  • थाम लो सँभालकर देश की मशाल को

    थाम लो सँभालकर देश की मशाल को

    tiranga


    हिन्द के बहादुरो शूरवीर बालको!
    थाम लो सँभाल कर देश की मशाल को!


    अन्धकार का गरूर आन-बान तोड़ दो,
    बालको, भविष्य के लिए मिसाल छोड़ दो,
    दो नयी-नयी दिशा वर्तमान काल को।
    थाम लो सँभाल कर देश की मशाल को!


    देश माँगता कि खून से रंगा गुलाब दो,
    तुम उठो सिपाहियो ! शत्रु को जवाब दो,
    झूम-झूमकर मलो युद्ध के गुलाल को।
    थाम लो सँभाल कर देश की मशाल को!


    दूर तक जमीन पर शानदान जय लिखो,
    तुम विशाल सिन्धु पर खून से विजय लिखो,
    तोड़ दो पिशाच के तुम हरेक जाल को। .
    थाम लो सँभाल कर देश की मशाल को!


    रामावतार त्यागी

  • मेहनत करो साथियो – प्रिया शर्मा

    श्रम का अर्थ मेहनत है। और जो मेहनत कर जिन शिख गया है वह इस संसार में अपना जीवन यापन आराम से कर सकता है इस आधिनुक युग में बिना मेहनत के कुछ नहीं होता इसी मेहनत पर कविता बहार की एक कविता –

    मेहनत करो साथियो - प्रिया शर्मा

    मेहनत करो साथियो- प्रिया शर्मा

    किसान

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत है सुख का आधार,

    मेहनत से ही फूल खिलेंगे,

    मेहकेगा सारा संसार।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत से है जग में उजियारा,

    देखो तपता सूरज दिनभर,

    जिससे मिटता है अँधियारा।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत है चलने का नाम,

    गिरते-गिरते चींटी चढ़ती,

    पा जाती है अपना मुकाम।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत का फल होता है मीठा,

    यदि मेहनत न कर पाते राम,

    तो कभी न मिल पातीं सीता।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत को हैं कर्म अनेक,

    प्राप्त करा जन-जन को शिक्षा,

    भविष्य बनाओ सबका नेक।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत में हैं वेद-पुराण,

    गर कर न सके तुम मेहनत साथी,

    तो व्यर्थ हैं सब गीता-कुरान।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत तो है भारत का गहना,

    खून-पसीने से देश को सींचा करते हैं

    अपने किसान और इस देश की सेना।

    मेहनत करो साथियो , मेहनत

    मेहनत पर है गीता का ये वचन,

    “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”

    मेहनत से ही सार्थक होते हैं कृष्णा के ये कथन।

    -प्रिया शर्मा

  • नदी का रास्ता

    नदी का रास्ता

    नदी
    प्रेरणादायक कविता


    नदी को रास्ता किसने दिखाया?
    सिखाया था उसे किसने
    कि अपनी भावना के वेग को
    उन्मुक्त बहने दे?
    कि वह अपने लिए
    खुद खोज लेगी
    सिन्धु की गंभीरता
    स्वच्छंद बहकर
    इसे हम पूछते आए युगों से,
    और सुनते भी युगों से आ रहे उत्तर नदी का
    मुझे कोई कभी आया नहीं था राह दिखलाने;
    बनाया मार्ग मैंने आप ही अपना।


    ढकेला था शिलाओं को,
    गिरी निर्भीकता से मैं कई ऊँचे प्रपातों से,
    वनों में, कंदराओं में
    भटकती, भूलती मैं
    फूलती उत्साह से प्रत्येक बाधा-विघ्न को
    ठोकर लगाकर, ठेलकर
    बढ़ती गई आगे निरन्तर
    एक तट को दूसरे से दूर तर करती।


    बढ़ी सम्पन्नता के साथ
    और अपने दूर तक फैले हुए साम्राज्य के
    अनुरूप
    गति को मंद कर-
    पहुँची जहाँ सागर खड़ा था
    फेन की माला लिए
    मेरी प्रतीक्षा में।
    यही इतिवृत्त मेरा-
    मार्ग मैंने आप ही अपना बनाया था।


    -बालकृष्ण राव

  • कूट अकबर के|तेजल छंद (वाचिक) – बाबूलाल शर्मा

    कूट अकबर के|तेजल छंद (वाचिक) – बाबूलाल शर्मा

    छंद
    छंद


    वर्णिक- तगण मगण, यगण यगण तगण गुरु
    मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२१ २


    . 🌛 *…कूट अकबर के* 🌜


    . *१*
    माने नहीं राणा, हठीला थकित हो टोडर गया।
    हे शाह माना वह, नहीं वह हठी है राणा नया।
    अकबर हुआ कुंठित, विकारी निराशा मन में बहे।
    मेरा महा शासन, उदयपुर खटकता भारी रहे।
    . *२*
    नवरत्न बुलवाए, सभी से सुलह की बातें करे।
    अब कौन राणा को, मनाए मुगलिया पीड़ा हरे।
    मंत्री सभी बोले, वहाँ भेजिए अब भगवंत को।
    रजपूत हैं यह भी, सगुण है मनाएँ कुलवंत को।
    . *३*
    ये कूट अकबर के, कुटिलता दिखावे बस थे सखे।
    राणा बना काँटा, निकाले समर को सज्जित रखे।
    रजपूत राणा भी, सनेही सुजन सब यह जानते।
    भट भील सेना जन, जरूरी समर है तय मानते।

    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • हिंदी संग्रह कविता- वीर बालक

    वीर बालक

    school
    प्रेरणादायक कविता


    हम प्रभात की नई किरण हैं,
    हम दिन के आलोक नवल।
    हम नवीन भारत के सैनिक,
    धीर, वीर, गम्भीर, अचल।
    हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के,
    सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
    हम हैं शांति-दूत धरणी के,
    छाँह सभी को देते हैं।
    वीर-प्रसू माँ की आँखों के,
    हम नवीन उजियाले हैं।
    गंगा-यमुना, हिन्द-महासागर,
    के हम रखवाले हैं।
    हम हैं शिवा-प्रताप, रोटियाँ
    भले घास की खाएँगे।
    मगर किसी जुल्मी के आगे,
    मस्तक नहीं झुकाएँगे।