Author: कविता बहार

  • हिंदी संग्रह कविता-डटे हुए हैं राष्ट्र धर्म पर

    डटे हुए हैं राष्ट्र धर्म पर

    tiranga


    अटल चुनौती अखिल विश्व को भला-बुरा चाहे जो माने।
    डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ।


    लाख-लाख पीढ़ियाँ लगीं, तब हमने यह संस्कृति उपजाई।
    कोटि-कोटि सिर चढ़े तभी इसकी रक्षा सम्भव हो पाई॥
    हैं असंख्य तैयार स्वयं मिट इसका जीवन अमर बनाने।
    डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ।


    देवों की है स्फूर्ति हृदय में, आदरयुत पुरखों का चिन्तन।
    परम्परा अनुपम वीरों की, चरम साधकों के चिर साधन॥
    पीड़ित शोषित दुखित बान्धवों के, हमको हैं कष्ट मिटाने।
    डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने।


    हमी विधाता नयी सृष्टि के, सीधी सच्ची स्पष्ट कहानी।
    प्रेम कवच है, त्याग अस्त्र है, लगन धार आहुति है वाणी॥
    सभी सुखी हों, यही स्वप्न है, मरकर भी यह सत्य बनाने
    डटे हुए हैं राष्ट्रधर्म पर, विपदाओं में सीना ताने ॥


    नहीं विरोधक रोक सकेंगे, निन्दक होवेंगे अनुगामी।
    जन-जन इसकी वृद्धि करेगा, इसकी गति न थमेगी थामे॥
    जुटे हुए हैं इसीलिए हम राष्ट्रधर्म को अमर बनाने । डटे…

  • हिंदी संग्रह कविता-हार नहीं होती हिन्दी कविता

    हार नहीं होती हिन्दी कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    धीरज रखने वालों की हार नहीं होती।
    लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।
    एक नन्हींसी चींटी जब दाना लेकर चलती है।।


    चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है।
    चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
    आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती। धीरज रखने


    डुबकियाँ सिन्धु में गोताखोर लगाते हैं।
    जो जाकर खाली हाथ लौट फिर आते हैं।
    मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में।
    बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में।
    खाली उसकी मुट्ठी हर बार नहीं होती। धीरज…


    असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो।
    क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो॥
    जब तक न जीत हो, नींद, चैन को त्यागो तुम,
    संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम,
    कुछ किये बिना ही जय साकार नहीं होती।
    धीरज रखने वालों की हार नहीं होती।

  • जंगल की आग – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जंगल की आग – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जंगल की आग देखकर
    सिहर उठता हू मैं
    सोचता हूँ उस सूक्ष्म जीव
    का क्या हुआ होगा
    जो अभी- अभी किसी अंडे से
    बाहर आया होगा
    आँखें अभी उसकी खुली भी नहीं
    तन पर जिसके अभी ऊर्जा आई ही नहीं

    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।

    शेर के उस छोटे से बच्चे का
    अंत कितना भयावह रहा होगा
    अभी तो उसने अपनी माँ के
    दूध का आचमन भी न किया होगा
    वह अपने भाई बहनों के साथ खेल भी ना सका
    कि मौत के खेल ने अपना रंग दिखा दिया

    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।

    उन छोटी – छोटी चीटियों की भी बात करें हम
    टिक-टिक कर रेंगती यहाँ से वहाँ
    क्या हुआ होगा इनका
    अंडे इनके अपने बच्चों को इस धरती पर
    बाहर भी न ला पाए होंगे
    कि जंगल की आग ने इन्हें अपनी आगोश में ले लिया होगा

    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।

    बात हम उनकी भी करें जंगल जिनका जीवन स्थल है
    वे झोपड़ी बना जंगल पर आश्रित रहते हैं
    रोज का भोजन रोज एकत्रित करने वाले ये जीव ये प्राणी
    क्या इन्हें बाहर भागकर आने का मौक़ा मिला होगा
    या चारों और फैलती भयावह आग ने इन्हें निगल लिया होगा

    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।

    ये जंगल की आग केवल जंगल की आग ही नहीं
    वरन समाज में फ़ैली कुरीतियों की ओर भी संकेत देती हैं
    दंगा , आतंकवाद भी समाज में जंगल की आग की तरह
    सब कुछ नष्ट कर मानव जीवन को बेहाल करती है
    क्षेत्रीयतावाद, जातिवाद, धर्मवाद आज भी
    जंगल में आग की तरह हमारा पीछा नहीं छोड़ रहे
    ये आग देखकर सिहर उठता हूँ मैं
    इस आग में जलते मानव को, झुलसते मानव को
    देख रो पड़ता हूँ मैं रो पड़ता हूँ मैं

    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।
    जंगल की आग देखकर सिहर उठता हू मैं।

    – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

  • लब पे आये मेरे खुदा नाम तेरा – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    लब पे आये मेरे खुदा नाम तेरा – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    लब पे आये मेरे खुदा नाम तेरा
    सुबह हो या शाम ओ मेरे खुदा
    तेरे दीदार की हसरत हो मुझे
    तेरी कायनात से मुहब्बत हो मुझे
    हर इक शै से रूबरू करना मुझे
    अपने हर इक इल्म से नवाजो मुझको
    अपने दर का नूर बना लो मुझको


    मैं चाहता हूँ तेरा करम हो मुझ पर
    तेरा एहसास आसपास मेरे हो अक्सर
    गरीबों का सहारा बनूँ ओ मेरे खुदा
    लोगों की आँखों का तारा बनूँ ओ मेरे खुदा
    मुझे भी आसमां का इक तारा कर दो
    खिलूँ मैं चाँद की मानिंद कुछ ऐसा कर दो
    ए खुदाया तेरी रहमत तेरा करम हो मुझ पर
    तेरे साए में गुजारूं ये जिन्दगी ओ खुदा


    तू आसपास ही रहना मेरा रक्षक बनकर
    तेरे क़दमों पे बिछा दूं ये जिन्दगी मौला
    मैं तुझे चाहूँ तुझे अपनी जिन्दगी से परे
    कि मैं वार दूं खुद को तुझ पर ए खुदा
    कुछ ऐसा करना मैं रहूँ तेरे करम के काबिल
    तुझे हर वक़्त दिल के करीब पाऊँ ए मेरे खुदा
    लब पे आये मेरे खुदा नाम तेरा
    सुबह हो या शाम ओ मेरे खुदा

  • राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    राम स्तुति / अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    shri ram hindi poem.j

    रघुनन्दन हे सबके प्यारे
    रामचंद्र तुम सबके दुलारे
    कौशल्या को तुम हो प्यारे
    दशरथ नंदन सबके प्यारे
    जय सीतापति जय हो राघव
    जय दशरथी जय जानकी बल्लभ
    जय रघुनन्दन जय श्री राम
    रावण को तुमने है तारा
    प्रिय विभीषण को गले लगाया
    सुग्रीव ने तुमसे जीवन पाया
    सबरी को भी मोक्ष दिलाया
    आदर्शों के तुम सो स्वामी
    हे प्रभु हे अन्तर्यामी
    अहिल्या ने भी जीवन पाया
    असुरों को भी प्रभु पार लगाया
    बने सबकी आँखों के तारे
    घर – घर आओ राम हमारे
    राम-राम जय राम – राम
    कर दो सबके पूर्ण काम
    निर्मल कर दो सबकी काया
    हर लो प्रभु जी सारी माया
    रघुनन्दन हे सबके प्यारे
    रामचंद्र तुम सबके दुलारे