Author: कविता बहार

  • जल ही जीवन है

    जल ही जीवन है

    जल ही जीवन है

    शांत, स्वच्छ, निर्मल धारा, कभी है चंचल चितवन
    जल, नीर, पानी, कह लो, या कह लो इसको जीवन ।।

    धरती के गर्भ में पड़ते ही, हुआ जीवन का स्फूटन
    हृदय धरा का धड़क उठा, शुरू हुआ स्पंदन ।।

    झरने, झीलें, पोखर बने, बने बाग, वन, उपवन
    हरियाली की चूनर ओढ़े, वसुंधरा बनी नव दुल्हन ।।

    जलचर, थलचर, नभचर, और प्रकृति का कण-कण
    सदियों से जल ही बना हुआ है, सृष्टि का आलंबन ।।

    नीर बिना खो ही देगी, अवनि अपना यौवन
    जल बिना संभव नहीं, भूमि पर कहीं जीवन ।।

    बहुमूल्य यह निधि हमारी, करें आज यह चिंतन
    बूंद-बूंद कर इसे सहेजें, क्योंकि जल ही तो है जीवन ।।
    रचना चेतन

  • होली पर दोहे – हरिओम शर्मा

    होली पर दोहे – हरिओम शर्मा

    होली पर दोहे – होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। विकिपीडिया

    होली पर दोहे – हरिओम शर्मा

    holi
    holi

    मंगलमय हो आपको, होली का त्यौहार।
    द्वेष, बैर को छोड़कर , ख़ूब लुटाओ प्यार।।

    रंग अबीर गुलाल हैँ, गुजियाओं के संग ।
    पिचकारी है प्रेम की, ये फागुन के रंग ।।

    भल्ले टिक्की पापड़ी काजी है अनमोल ।
    ठंडाई मैं प्यार का ,रंग दिया है घोल ।।

    हिस्से पापड़ कुरकुरे, और वेसन के सेव ।
    ठंडाई है भांग की ,खुश होंगे महादेव।।

    व्हाट्स एप पर कर दिया, हमने तो ऐलान।
    कितना भी रंग डाल लो ,फ़ोटो है श्रीमान।।

    द्वेषभाव कटुता जलन ,ऊंच नीच को भूल ।
    प्रेम सहित स्वीकार लो ,ये फागुन के फूल।।

    नशा कीजिये प्यार का ,मिट जाये सब बैर ।
    सबको अपना कीजिये, रहे न कोई गैर ।।

    इंतजार मैं हम खड़े ,लेकर गुज़िया,रंग ।
    कृष्ण कन्हैया आइये, राधा जी के संग ।।

    ढोल नगाड़े बज रहे ,गाते रसिया फाग ,
    शर्वत गुजिया सज रहे,उमड़ रहा अनुराग ,

    सरसों सेमल ढाक के ,रंग बिरंगे फूल ,
    मस्त धूप हल्की हवा , मौसम है अनुकूल ,

    आम लदे है बौर से ,फ़ैली मस्त सुगंध ,
    प्रेमांकुर फूटन लगे ,टूटन लागे बंध,

    सजनी साजन खेलते, उड़े अबीर गुलाल ,
    हुआ हरा तन और मन ,गाल गुलाबी लाल ,

    द्वेष ईर्स्या,कपट छल ,जले होलिका संग ,
    सराबोर मन प्यार से ,ऐसा वरसे रंग ,

    हरिओम शर्मा

  • कर्म की राह पर – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कर्म की राह पर – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कर्म की राह पर
    कर्म का आँचल पकड़
    पथ- प्रदर्शक बन
    ओरों को राहें दिखा

    कर्म की प्रधानता
    बनाती महान है
    सफलता की सीढियां
    चूमती चरण सभी के

    कर्म के महत्व को
    बखानते धर्म ग्रन्थ
    प्रफुल्लित कर मन को
    दिखाते नई राह हैं

    कर्महीन बन धरा पर
    अस्तित्व पर संकट न बन
    जीवन को बंधन मुक्त कर
    कर्म धरा पर उतर

    कर्म कर अर्जुन महान
    कर्म कर गाँधी महान
    कर्म कर अब्दुल महान
    कर्म कर महान बन

    पथ – प्रदर्शक बन सभी का
    कर्म का विधान बन
    कर्म की राह पर
    कर्म का आँचल पकड़

    पथ- प्रदर्शक बन
    ओरों को राहें दिखा

  • ये पुस्तकों की दुनिया- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    पुस्तक

    ये पुस्तकों की दुनिया- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    ये पुस्तकों की दुनिया
    होती नहीं बेमानी
    देती हैं ज्ञान सबको
    दिखाती हैं राह सबको

    ये पुस्तकों की दुनिया

    ये पुस्तकें जहां हों
    फिर दोस्त न वहाँ हों
    सच्चा दोस्त बनने का
    सपना दिखाती पुस्तकें

    ये पुस्तकों की दुनिया

    इन पुस्तकों से नाता
    सदियों रहा सभी का
    ज्ञान को संजोती
    संवारती ये पुस्तकें

    ये पुस्तकों की दुनिया

    ये पुस्तकें जहां हो
    कहलाएं ज्ञान मंदिर
    पूजा करें सब इनकी
    कह गए बापू जी

    ये पुस्तकों की दुनिया

    पुस्तकों ने सभी को
    सभ्यता सिखाई
    इनके आचमन से
    चहुँ रौशनी है छाई

    ये पुस्तकों की दुनिया
    होती नहीं बेमानी
    देती हैं ज्ञान सबको
    दिखाती हैं राह सबको

  • बदरी – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बदरी – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्रकृति ने ली अंगडाई है
    चहुँ ओर बदरी छाई है
    ग्रीष्म को बिदाई मिल रही
    चहुँ और बूँदें पड़ रही

    करो वर्षा का आगमन
    करो बूंदों से आचमन
    प्रकृति की छटा निराली हो रही
    चहुँ और बूँदें पड़ रही

    हम बादलों को चूम लें
    पंछी ये गीत गा रहे
    इस अवसर को हम न गवाएं
    बादलों का साथ निभाएं

    चहुँ और हरियाली खिलाएं
    आओ हम मिल पेड़ लगाएं
    कितना सुन्दर है ये आलम
    हो रही चहुँ और रिमझिम

    कोयल की कुक प्यारी
    खिल रही है क्यारी-क्यारी
    प्रकृति के हम ऋणी हैं
    जिसने चहुँ और शांति दी है

    बच्चों के भीगे तन-मन
    झूमें सबके तन-मन
    ये वर्षा का आगमन
    प्रक्रति को करो नमन