Author: कविता बहार

  • मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ – कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

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    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    मैं एक अदद इंसान हूँ

    दुआओं का समन्दर रोशन करता है जो

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    सिसकती साँसों के साथ जी रहे हैं जो

    उनके लिए इंसानियत का वरदान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    रोशन न हो सका जिसकी कोशिशों का आसमां

    उनके लिए उम्मीद और आशा का आसमान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    भाई को भाई से जुदा करते हैं जो

    उनके रिश्तों में मिठास भरने का एक पैगाम हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    चिंता की लकीरों को मिटाने का जज़्बा लिए जी रहा हूँ

    चेहरों पर आशाओं की एक मुस्कान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    क्यूं कर दफ़न हो जाए मेरे सपने

    कोशिशों का एक समंदर हूँ ,तूफां में पतवार हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    क्यूं कर डूब जाए मेरी कश्ती बीच मझधार

    दौरे – तूफां में भी , मैं मंजिल हूँ किनारा हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    मैं एक अदद इंसान हूँ

    दुआओं का समन्दर रोशन करता है जो

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    सिसकती साँसों के साथ जी रहे हैं जो

    उनके लिए इंसानियत का वरदान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

  • बहुत भटक लिया हूँ मैं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बहुत भटक लिया हूँ मैं

    बहुत भटक लिया हूँ मैं

    बहुत बहक लिया हूँ मैं

    बहुत कर ली है मस्ती

    बहुत चहक लिया हूँ मैं

    बहुत कर ली शरारतें मैंने

    बहुत बिगड़ लिया हूँ मैं

    अब मुझे विश्राम चाहिए

    कुछ देर आराम चाहिए

    इस उलझनों से

    इन बेपरवाह नादानियों से

    एक दिशा देनी होगी

    अपने जीवन को

    कहीं तो देना होगा

    ठहराव इस जिन्दगी को

    कब तक यूं ही भटकता रहूँगा

    कब तक यूं ही बहकता रहूँगा

    सोचता हूँ

    चंद कदम बढ़ चलूँ

    आध्यात्म की राह पर

    मोक्ष की आस में नहीं

    एक सार्थक

    एक अर्थपूर्ण

    जीवन की ओर

    जहां मैं और केवल वो

    जो है सर्वशक्तिमान

    शायद मुझे

    अपनी पनाह में ले ले

    तो चलता हूँ उस दिशा की ओर

    और आप …………………….

  • मेरी कलम से पूछो – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मेरी कलम से पूछो

    मेरी कलम से पूछो

    कितने दर्द समाये हुए है

    मेरी कलम से पूछो

    आंसुओं में नहाये हुए है

    जब भी दर्द का समंदर देखती है

    रो पड़ती है

    सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय

    सिसक उठती है

    ऋषिगंगा की बाढ़ की लहरों में तड़पती जिंदगियां देख

    रुदन से भर उठती है

    मेरी कलम से पूछो

    कितनी अकाल मृत्युओं का दर्द समाये हुए है

    वो कली से फूल में बदल भी न पाई थी

    रौंद दी गयी

    मेरी कलम से पूछो

    उसकी चीखों के समंदर में डूबी हुई है

    मेरी कलम से पूछो

    कितने दर्द समाये हुए है

    मेरी कलम से पूछो

    आंसुओं में नहाये हुए है

    जब भी दर्द का समंदर देखती है

    रो पड़ती है

    सिसकती साँसों से होता है जब इसका परिचय

    सिसक उठती है

  • स्त्री

    माँ बेटी

    स्त्री

    स्त्री मन की भावना है,

    ईश की आराधना है,

    जीवन की साधना है,

    सुखदायी प्रार्थना है।

    स्त्री वृषभानुजा है,

    विष्णु संग पद्मासना है,

    सिद्ध हुई उपासना है,

    समृद्धि की कामना है।

    स्त्री पतित पावनी है,

    चंचल चपल दामिनी है,

    श्री राम की जानकी है,

    खुशियों की पालकी है।

    स्त्री दुर्गा चंडिका भवानी है,

    महागौरी कुमारी कल्याणी है,

    शिवा चामुण्डा चण्डी है,

    कालिका रूप प्रचण्डिनी है।

    स्त्री माँ की पावन मूरत है,

    मनमोहक सुन्दर सूरत है,

    भरा हुआ कलश अमृत है,

    प्रभु की कलाकृति उत्तम है।

    स्त्री है तो ममता है,

    सुखमय जीवन चलता है,

    उपवन फूलों से खिलता है,

    जिससे घर आँगन सजता है।

    स्त्री सृष्टि की संचालक है,

    बच्चों की प्रतिपालक है,

    संस्कृति की प्रचारक है,

    सहनशीलता धारक है।

    स्त्री दुःख में मिला सहारा है,

    प्रेम की अमृत धारा है,

    जगमग कोई सितारा है,

    नदियों का मिला किनारा है।

    स्त्री चमकता सोना है,

    पल्लू का प्यारा कोना है,

    बुरी सोच का रोना है,

    ये ऐसा जादू टोना है।

    स्त्री परम पुनीता है,

    श्री कृष्ण की भगवद गीता है,

    अनन्त असीम महिमा है,

    मर्यादा की सीमा है।

    -प्रिया शर्मा

  • तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से संत नहीं कहलाओगे

    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से संत नहीं कहलाओगे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                     संत नहीं कहलाओगे ।
    निज कर्मों से ही तय होगा ,
                   जन्म कौन सा पावोगे ।।


    परहित की जो तजी भावना ,
             समझो सब कुछ व्यर्थ गया ।
    अर्थ तलाशी के चक्कर में ,
                 जीवन का ही अर्थ गया ।।
    दंभी कपटी छली लालची ,
                   नाम कमाकर जाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                    संत नहीं कहलाओगे ।।

    ऊँचे कुल की मान बड़ाई ,
                        तेरे काम न आयेंगे ।
    अपने सुख की खातिर जीना ,
                     बदनामी कर जायेंगे ।।
    कृतघ्नता आडंबर भरकर ,
                   लक्ष्यहीन कहलाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                   संत नहीं कहलाओगे ।।

    जीवन का उद्देश्य बना ले ,
                  तीर्थ मुझे ही बनना है ।
    अवगाहन मति मज्जन करके ,
                 भव से पार उतरना है ।।
    नाम निशानी इस मेले में ,
                   कर्मों से सिरझाओगे ।
    तीर्थ भूमि पर जन्म धरे से ,
                 संत नहीं कहलाओगे ।।

    रामनाथ साहू “ननकी”