हे नारी तुम शांति धाम हो
हे नारी, तुम शांति धाम हो।
शांति को देती तुम, शांति का दान हो।
पौरूषता का सम्मान तुम,
घर की आन हो।
आंगन की लक्ष्मी तुम,
सरस्वती का ज्ञान हो।
दो कुलों को तारने वाली,
ईश्वर का जग में तुम वरदान हो।
सारे जगत में आली हो।
नारी तुम दीवाली हो।
फूलों में बसती ख़ुशबू हो।
नारी तुम मतवाली हो।
तुम प्रियता की प्यास हो।
काल के , भाल के बार पर तुम प्रहार हो।
दुर्गा काली तुम हो।
नयनों में अश्रुजलों की धार हो।
मुकम्मल सब रिश्ते तुमसे,
पलकों के द्वार पर,, जो था, “सबरी” के बैठा,,
तुम उस धीरज की पहचान हो।
फूलों से ज्यादा कोमल तुम,
पर दुश्मनों के लिए, चट्टान हो।
टिक नहीं सकती, कोई दीवार तुम्हारे समक्ष,
नारी ,तुम अगणित हुंकार हो।
आशु गुप्ता
जिला शाहजहांपुर।