Author: कविता बहार

  • युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत- स्वामी विवेकानंद

    युवाओं के प्रेरणास्रोत

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    दिव्य सोच साधना से अपनी,पावन ज्ञान का दीप जलाया।
    सोए लोगों की आत्मा को,स्वामी जी ने पहली बार जगाया।
    भगवा हिंदुत्व का संदेश सुनाकर,भारत को विश्वगुरु बनाया।
    तंद्रा में सोई दुनिया के लोगों को,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज ने जगाया।

    11 सितंबर1893 को शिकागो में हिंदुत्व का ध्वज फहराया।
    संभव की सीमा से परे,असंभव को भी कर दिखलाया।
    समता,ममता से परहित परोपकार का मंत्र जो बतलाया।
    रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ का प्रेरणा पुंज फैलाया।

    प्रेम योग से भक्ति योग के सफर को जीना सिखलाया।
    नव भारत के स्वप्नदृष्टा,इंसानियत का पाठ है पढ़ाया।
    ज्ञान,भक्ति,त्याग,तप साधना समर्पण से ही बाल नरेंद्र।
    आत्मज्ञानी,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज स्वामी विवेकानंद कहलाया।

    12जनवरी 1863 मकर संक्रांति के दिन कलकत्ता में जन्मे विवेकानंद।
    पिता विश्वनाथ दत्त व माँ भुवनेश्वरी देवी को दिव्यशक्ति ने किया आनंद।
    भगवा वसन,भगवा साफा,लाल रंग के कपड़े का था उनका कमरबंद।
    भारतीयता का उदघोषक,आत्मविश्वास से जीने वाला फैलाता सुगंध।

    चेहरे पर आकाश की थी व्याप्ति,हृदय में सिंधु सी अतल गहराई थी।
    कदमों में प्रकृति सी अपरिमित गति,मृगनयनों से दिव्यता दिखलाई थी।
    व्यक्तित्व में कठिन तप की ऊष्मा,मंजी देह से झरता था संयम का अनुनाद।
    दृढ़ प्रतिज्ञ सन्यासी ने भारत को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने की बीड़ा उठाई थी।

    तार्किक ओजस्वी वाणी इनकी प्रतिभा मेधा का सबने लोहा माना।
    भाई बहन के संबोधन से शुरू होता वक्तव्य जग ने पहली बार जाना।
    सनातन धर्म की संस्कृति विरासत को विश्व ने पहली बार पहचाना।
    विवेकानंद की वाणी से गूँज उठा शिकागो धर्मसभा का कोना कोना।

    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री

  • फ़र्रूख़ाबाद हमारा है

    फ़र्रूख़ाबाद हमारा है

    ऐतिहासिक भूमि है,
    हमें प्राणों प्यारा है।
    वीरों को जन्म देने वाला,
    फ़र्रूख़ाबाद हमारा है।

    साहित्य के क्षेत्र में,
    यहां की महादेवी जी सितारा हैं।
    छायावाद का सहयोगी,
    फ़र्रूख़ाबाद हमारा है।

    चीन, आस्ट्रेलिया और श्रीलंका ने,
    यह जनपद निहारा है।
    बौद्ध धर्म का तीर्थस्थल,
    फ़र्रूख़ाबाद हमारा है।

    फ़र्रूख़ाबाद को मिला,
    तीन नदियों का सहारा है।
    महाभारत कालीन,
    फ़र्रूख़ाबाद हमारा है ‌।

    कवि विशाल श्रीवास्तव
    जलालपुर फ़र्रूख़ाबाद

  • अगर करो तुम वादा मुझसे

    अगर करो तुम वादा मुझसे

    मरुधर में भी फूल खिलादूँ
    पर्वत को भी धूल बनादूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    प्राण ! मेरे संग चलने का ।

    हँस-हँसकर शूल चुनूँ पथ के
    पलकों की नाजुक उँगली से
    बणीठणी-सा चित्र उकेरूं
    मग पर करुणा कजली से

    डगर-डगर की प्यास बुझादूँ
    राहों की भी आह मिटादूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    जलद ! मेरे संग गलने का ।

    पीप मचलते छालों का मैं
    दर्द बसालूँ अंतर्मन में
    मोती-माणक तारे जड़ दूँ
    सपनों के जर्जर दामन में

    हर आँसू की उम्र घटादूँ
    मधुर हास को शिखर चढ़ादूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    कमल ! मेरे संग खिलने का ।

    अटकी है जो नाव भँवर में
    दूँ तट का आलिंगन उसको
    खेते तार साँस का टूटे
    तो भी कुछ शोक नहीं मुझको

    हर भटके को राह दिखा दूँ
    रोते मन को जरा हँसा दूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    मीत ! मेरे संग ढलने का ।

    नूर नोंच लूँ आगे बढ़कर
    अँधियारी काली रातों का
    रहन पड़ा जो पूनम कंगन
    छुड़ा बढ़ाऊँ सुख हाथों का

    हर रजनी की मांग सजादूँ
    सुबहों को भी सुधा पिलादूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    दीप ! मेरे संग जलने का ।

    फैल रहा जो धुँआ नगर में
    पसर गया जो दर्द सफर में
    छेद रहा जो कांटा मन को
    बैठ गया जो तीर जिगर में

    पथ से उनको जरा हटादूँ
    दर्दों का भी नाम मिटादूँ
    अगर करो तुम वादा मुझसे
    शलभ ! मेरे संग जलने का ।

    अशोक दीप
    जयपुर

  • जिंदगी का आखिरी सफर….

    जिंदगी का आखिरी सफर….

    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा
    जो कभी मिलते भी नही थे उनका भी मेरे पास आना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा ।

    जो कठोर रहते थे, अपनी बात पे अड़े रहते थे
    जिनको कुछ भी मेरे से लेना – देना नही था
    उनके पास भी आज रोने का एक बहाना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा ।

    याद करेंगे मुझे वो सभी लोग उस दिन
    जिनकी जिंदगी की कहानियों मे कभी हँसते तो कभी लड़ते मेरे नाम का एक किरदार भी जुड़ गया
    लेकिन उनसे दूर जाना यही खुदा का मनमाना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा

    मंज़िल की आखिरी सफर मे चल नही पाऊंगा मै अपने पैरो से
    मुझे मेरे अपने लेके जायेंगे अपने कांधो पर कुछ उदास होकर या कुछ दुखी होकर
    उस दृश्य की सुंदरता का भी क्या पैमाना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा

    उस दिन मेरे जिस्म का अंग – अंग ठंडा और शांति से भरा हुआ होगा
    न किसी बात की चिंता होगी न ही किसी बात का संताप होगा
    उस दिन न ही जिंदगी का भगाना होगा, न ही सताना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा

    शायद कुछ बाते होंगी जो अधूरी रह जायेगी
    शायद कुछ माफियाँ होगी जिसे मांगने मे देर हो जायेगी
    शायद मेरी गलतियों का यही ज़ुर्मांना और खुदा का यही ज़माना होगा
    जिंदगी का आखिरी सफर बड़ा सुहाना होगा

  • जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग

    जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग

    शब्द बिदाई सुन लगे , होता कोई दूर ।
    अपने हमसे छूटते , होकर अति मजबूर ।।

    मात पिता का नेह ले , सृजन साधना शान ।
    करें बिदाई मंजरी , अद्भुत ले पहचान ।।

    बिलख रहे है मात पितु , चली सुता ससुराल ।
    किये बिदाई आज वह , उत्तर संग सवाल ।।

    हाय विधाता क्या किया , पिता गए परलोक ।
    करें विदाई किस तरह , कैसे लें हम रोक ।।

    चिर निद्रा में सो रही , बिलख रहा है लाल ।
    आज बिदाई दे रहें , देख सभी बेहाल ।।

    विकल प्रेम की है नियति , अश्रु बहे है नैन ।
    करूँ बिदाई साजना , होकर मैं बेचैन ।।

    पूर्ण हुआ सेवा समय , दिया ज्ञान का दान ।
    आज बिदाई की घड़ी , सभी विकल श्रीमान् ।।

    एक जन्म का बंध है , रिश्तों का ये डोर ।
    दर्द बिदाई दे रहा , भींगे आँचल छोर ।।

    शब्द हुए हैं मौन अब , छलक रहे हैं नैन ।
    कैसे किसको क्या कहें , करे बिदा बेचैन ।।

    जीवन का ये सत्य है , मिलन बिदाई संग ।
    लेकिन फीका मत पड़े , दिव्य प्रेम का रंग ।।


    —— माधुरी डड़सेना ” मुदिता “
    भखारा