युवाओं के प्रेरणास्रोत
दिव्य सोच साधना से अपनी,पावन ज्ञान का दीप जलाया।
सोए लोगों की आत्मा को,स्वामी जी ने पहली बार जगाया।
भगवा हिंदुत्व का संदेश सुनाकर,भारत को विश्वगुरु बनाया।
तंद्रा में सोई दुनिया के लोगों को,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज ने जगाया।
11 सितंबर1893 को शिकागो में हिंदुत्व का ध्वज फहराया।
संभव की सीमा से परे,असंभव को भी कर दिखलाया।
समता,ममता से परहित परोपकार का मंत्र जो बतलाया।
रुको न जब तक लक्ष्य न पाओ का प्रेरणा पुंज फैलाया।
प्रेम योग से भक्ति योग के सफर को जीना सिखलाया।
नव भारत के स्वप्नदृष्टा,इंसानियत का पाठ है पढ़ाया।
ज्ञान,भक्ति,त्याग,तप साधना समर्पण से ही बाल नरेंद्र।
आत्मज्ञानी,विश्वश्रेष्ठ विवेकपुंज स्वामी विवेकानंद कहलाया।
12जनवरी 1863 मकर संक्रांति के दिन कलकत्ता में जन्मे विवेकानंद।
पिता विश्वनाथ दत्त व माँ भुवनेश्वरी देवी को दिव्यशक्ति ने किया आनंद।
भगवा वसन,भगवा साफा,लाल रंग के कपड़े का था उनका कमरबंद।
भारतीयता का उदघोषक,आत्मविश्वास से जीने वाला फैलाता सुगंध।
चेहरे पर आकाश की थी व्याप्ति,हृदय में सिंधु सी अतल गहराई थी।
कदमों में प्रकृति सी अपरिमित गति,मृगनयनों से दिव्यता दिखलाई थी।
व्यक्तित्व में कठिन तप की ऊष्मा,मंजी देह से झरता था संयम का अनुनाद।
दृढ़ प्रतिज्ञ सन्यासी ने भारत को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने की बीड़ा उठाई थी।
तार्किक ओजस्वी वाणी इनकी प्रतिभा मेधा का सबने लोहा माना।
भाई बहन के संबोधन से शुरू होता वक्तव्य जग ने पहली बार जाना।
सनातन धर्म की संस्कृति विरासत को विश्व ने पहली बार पहचाना।
विवेकानंद की वाणी से गूँज उठा शिकागो धर्मसभा का कोना कोना।
*सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री