तन पर कविता-रजनी श्री बेदी
तन पर कविता हर मशीन का कलपुर्जा,मिल जाए तुम्हे बाजार में।नहीं मिलते हैं तन के पुर्जे,हो चाहे उच्च व्यापार में। नकारात्मक सोचे इंसा तो, सिर भारी हो जाएगा।उपकरणों की किरणों से , चश्माधारी हो जाएगा।जीभ के स्वादों के चक्कर में,न डालो पेनक्रियाज…