शांति पर कविता -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

शांति पर कविता  हम कैसे लोग हैंकहते हैं—हमें ये नहीं करना चाहिएऔर वही करते हैंवही करने के लिए सोचते हैंआने वाली हमारी पीढियां भीवही करने के लिए ख़्वाहिशमंद रहती हैजैसे नशाजैसे झूठजैसे अश्लील विचार और सेक्सजैसे ईर्ष्या-द्वेषजैसे युद्ध और हत्याएंऐसे ही और कई-कई वर्जनाओं की चाह हम नकार की संस्कृति में पैदा हुए हैंहमें नकार सीखाया … Read more

सुंदर विश्व बनाएं-डॉ नीलम

सुंदर विश्व बनाएं मानव के हाथों में कुदालखोद रहा अपने पैरों से रहा अपनी जडे़ निकाल अपने अपने झगडे़ लेकरकरता नरसंहार हैविश्व शांति के लिए बसबना संयुक्त राष्ट्र है निःशस्त्रिकरण की ओट मेंअपने घर में आयुध भंडार भरेपरमाणु की धौंस जता करकमजोरों पर वार करें कितनी कितनी शाखाएँ खोलींपर विश्व ना सुखी हुआएक देश कुपोषित होतादूजा महामारी … Read more

संयुक्त राष्ट्र पर कविता- दूजराम साहू

संयुक्त राष्ट्र पर कविता आसमान छूने की है तमन्ना, अंधाधुंध हो रहे अविष्कार! चूक गए तो विनाशकारीसफलता में जीवन उजियार! !  विज्ञान वरदान ही नहीं, अभिशाप भी है, कहीं नेकी करता तो कहीं पाप भी है! उन्नति में लग जाए तोकर दे भव से पार ! चूक गए तो विनाशकारीसफलता में जीवन उजियार ! !  निर्माण के इस पावन युग … Read more

घर वापसी- राजेश पाण्डेय वत्स

घर वापसी नित नित शाम को, सूरज पश्चिम जाता है। श्रम पथ का जातक फिर अपने घर आता है।  भूल जाते हैं बातें थकान और तनाव की ,अपने को जब जबपरिवार के बीच पाता है।  पंछियों की तरह चहकतेघर का हर सदस्य,घर का छत भी तब अम्बर नजर आता है।  कल्प-वृक्ष की ठंडकता भी फीकी सी लगने लगे शीतल पानी का गिलासजब … Read more

वक़्त से मैंने पूछा-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

वक़्त से मैंने पूछा      वक़्त से मैंने पूछाक्या थोड़ी देर तुम रुकोगे ?वक़्त ने मुस्करायाऔरप्रतिप्रश्न करते हुएक्या तुम मेरे साथ चलोगे?आगे बढ़ गया…। वक़्त रुकने के लिए विवश नहीं थाचलना उसकी आदत में रहा है सो वह चला गयातमाम विवशताओं से घिरा मैं चुपचाप बैठा रहावक्त के साथ नहीं चलापरवक्त के जाने के बादउसे हर पल … Read more