वर्षा ऋतु कविता – कवयित्री श्रीमती शशिकला कठोलिया

वर्षा ऋतु कविता 

ग्रीष्म ऋतु की प्रचंड तपिश,
 प्यासी धरती पर वर्षा की फुहार,       
चारों ओर फैली सोंधी मिट्टी,
प्रकृति में होने लगा जीवन संचार।

दिख रहा नीला आसमान ,
सघन घटाओं से आच्छादित ,
वर्षा से धरती की हो रही ,
श्यामल सौंदर्य द्विगुणित । 

छाई हुई है खेतों में ,
सर्वत्र हरियाली ही हरियाली ,
नाच रहे हैं वनों में मोर ,
आनंदित पूरा जंगल झाड़ी ।

नदिया नाला जलाशय, 
जल से दिख रहे परिपूर्ण ,
इंद्रधनुष की सतरंगी छटा,
अलंकृत किए आसमान संपूर्ण ।

हो गई थी सारी धरती ,
ग्रीष्म ऋतु में बेजान वीरान ,
वर्षा ऋतु के आगमन से ,
कृषि कार्यों में संलग्न किसान।

 कृषि प्रधान इस भारत में ,
वर्षा प्रकृति की जीवनदायिनी ,
सच कहा है किसी ने ,
वर्षा अन्न वृक्ष जल प्रदायिनी।

श्रीमती शशिकला कठोलिया, शिक्षिका, अमलीडीह ,डोंगरगांव
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