दीपक की ख्वाहिश

दीपक की ख्वाहिश

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दीपक की ख्वाहिश
मिट्टी से बना हूँ मैं तो,
मिट्टी में मिल जाऊँगा।
जब तक हूँ अस्तित्व में,
रौशनी कर जाऊँगा ।।
तमस छाया हर तरफ,
सात्विकता  बढ़ाऊंगा।
विवेक को जगाकर मैं,
रौशनी कर जाऊँगा ।।
धैर्य की बाती लगाकर,
विनय से तेल बनाऊंगा।
सतत ज्ञान बढ़ाकर मैं,
रौशनी कर जाऊँगा ।।
उत्साह मेरे है अंदर,
सभी में भर जाऊँगा।
ख्वाहिश एक ही बस,
रौशनी कर जाऊँगा ।।
मधु सिंघी, नागपुर(महाराष्ट्र)
मो..9422101963
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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