बोल रहे पाषाण

बोल रहे पाषाण

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बोल रहे पाषाण अब
व्यक्ति खड़ा मौन है,
छोड़ा खुद को तराशना
पत्थरों पर ही जोर है।
कभी घर की दीवारें
कभी आँगन-गलियारे,
रखना खुद को सजाकर
रंग -रौगन का दौर है।
घर के महंगे शो पीस
बुलाते चारों ओर हैं  ,
मनुज को समय नहीं
अब चुप्पी का दौर है।
दिखावे की है दुनिया
कलाकारी सब ओर है,
असली चेहरा छुपा लेना
अब मुखौटों का दौर है।
मन की आँखें खोल लो
मौन करता अब शोर है,
पहले खुद को तराश लो
दूसरों पर कहाँ जोर है।।
मो..9422101963
मधुसिंघी,नागपुर(महाराष्ट्र)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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