Author: कविता बहार

  • राउत नाचा पर कविता

    राउत नाचा पर कविता

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “राउत नाचा” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति और विशेषकर राउत नाच पर केंद्रित है। राउत नाच छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय नृत्य है जो अपनी अनूठी शैली और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से राउत नाच की सुंदरता, उसके पीछे की कहानियां और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।

    राउत नाचा पर कविता

    काव्य विधा : –रोला

    राउत नाचा पर कविता

    दीवाली के पूर्व, नाचते राउत नाचा।
    हिन्दू का त्योहार, सदा हिय प्रेमिल वाचा ।।
    यादव कुल समुदाय, नृत्य इस पर हैं करते ।
    हाना दोहे गान, मधुर सुर में हैं धरते।।

    रंग बिरंगी टोप, शीश में अपने धारे ।
    सजी लाठियाँ हाथ, झूमते गाते सारे ।।
    मोहर दफड़ा वाद्य, साथ ढोलक भी बाजे ।
    घर-घर जा आशीष, देत हिय प्रेमिल साजे ।।

    सदा नृत्य के बीच, भक्ति के दोहे गाते।
    कभी हास्य से पूर्ण, भाव है दोहे लाते।।
    कहते राउत नृत्य, पुरुष जन ही है धरते।
    सुख समृद्धि युत देश, कामना प्रभु से करते।।लंबे-लंबे बाँस, मड़ाई कर में साजे ।
    कहते हैं सब लोग, देवता इसमें राजे ।।
    पूजन वंदन साथ, गली में निकले लेकर ।
    राउत नाचे झूम, भाव में तन-मन देकर ।।

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी”

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की कविता “राउत नाचा” का व्याख्या

    व्याख्या:

    यह कविता राउत नाच को दीवाली के त्योहार से जोड़ती है और इसे यादव समुदाय का एक विशेष नृत्य बताया गया है। कवि ने इस नाच को “हिन्दू का त्योहार” और “सदा हिय प्रेमिल वाचा” कहा है। कवि ने इस नाच में रंग-बिरंगे वेशभूषा और विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का वर्णन किया है। कवि ने इस नाच को “भक्ति के दोहे गाते” और “सुख समृद्धि युत देश, कामना प्रभु से करते” कहा है।

    कवि ने राउत नाच में लंबे-लंबे बाँसों का उपयोग करने का भी वर्णन किया है और कहा है कि इन बाँसों को देवता मानकर पूजा जाता है। कवि ने इस नाच को एक ऐसे अनुष्ठान के रूप में चित्रित किया है जिसमें लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नृत्य करते हैं।

    कविता का सार:

    यह कविता राउत नाच की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस नाच को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें राउत नाच के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    निष्कर्ष:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “राउत नाचा” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें राउत नाच के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    अतिरिक्त जानकारी:

    राउत नाच आमतौर पर दीवाली के बाद किया जाता है।

    इस नाच में केवल पुरुष ही भाग लेते हैं।

    राउत नाच में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।

    राउत नाच को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

    यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

    यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

    रोला छंद के बारे में:

    रोला छंद दोहा छंद का ही एक प्रकार है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 13 अक्षर होते हैं। यह छंद भावों को व्यक्त करने के लिए बहुत प्रभावी माना जाता है।

    कविता में रोला छंद का प्रयोग:

    कवि ने इस कविता में रोला छंद का प्रयोग करके राउत नाच की लय और ताल को बखूबी व्यक्त किया है। रोला छंद की गतिशीलता ने कविता को और अधिक जीवंत बना दिया है।

    कविता का सौंदर्य:

    कवि ने इस कविता में राउत नाच का वर्णन करते हुए बहुत ही सुंदर शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने राउत नाच की रंगीन दुनिया को शब्दों के माध्यम से जीवंत कर दिया है। कविता में प्रयुक्त छंद और अलंकारों ने कविता को और अधिक सुंदर बना दिया है।

  • चँदैनी पर कविता

    चँदैनी पर कविता

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “चँदैनी पर रोला” छत्तीसगढ़ की लोककथा लोरिक-चंदा पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और विशेषकर चंदैनी नृत्य को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

    चँदैनी पर कविता

    चँदैनी पर कविता

    काव्य विधा : –रोला

    कथा नृत्य दो रूप, चँदैनी के हैं रहते ।
    लोरिक चंदा प्रेम, कहानी इसमें कहते ।।
    भाव भंगिमा साथ, नृत्य कर कहते गाथा।
    ऊर्जा से भरपूर, देखके झुकते माथा।।

    ढोलक टिमकी वाद्य, बजे तब लगते ठुमके ।
    पुरुष वेश धर नार, हिलाते देखो झुमके ।।
    जन मानस के बीच, चँदैनी पैठ जमाई।
    सुन लोरिक की तान, चँदैनी दौड़ी आई ।।

    तीन लाख जन साथ, बैठ के देखे नाचा ।
    झूठ नहीं यह बात, लोग हैं कहते साँचा ।।
    लोरिक यादव जात, चँदैनी राज कुमारी ।
    खेले पासा खेल, बढ़े तब प्रेम खुमारी ।।

    हार गए हिय जान, भागने जुगत लगाते ।
    मल्लिन दाई साथ, प्रेम वश हाथ मिलाते ।।
    पितु राजा के  क्रोध, बढ़े तब ऐसी खाई ।
    भेजे सैनिक दूत, हुई फिर हाथा पाई ।।

    जीत गया फिर प्रेम, लौटकर दोनों आये।
    आनंदित हो देख, जिंदगी सुखद बिताये ।।
    लोककला का रूप, नृत्य यह अनुपम जानो ।
    छत्तीसगढ़ी शान, कहे है इनको मानो ।।

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की कविता “चँदैनी पर रोला” का संदर्भ सहित व्याख्या

    संदर्भ:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “चँदैनी पर रोला” छत्तीसगढ़ की लोककथा लोरिक-चंदा पर आधारित है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और विशेषकर चंदैनी नृत्य को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

    व्याख्या:

    यह कविता चंदैनी नृत्य को एक उत्सव के रूप में चित्रित करती है जो लोगों को एक साथ लाता है और उनकी संस्कृति को जीवंत रखता है। कवि ने चंदैनी नृत्य को “लोककला का रूप” और “छत्तीसगढ़ी शान” बताया है। कवि ने इस नृत्य को “भाव भंगिमा साथ, नृत्य कर कहते गाथा” बताया है। यानी इस नृत्य में भावों और हावभावों के साथ कहानी को बयान किया जाता है।

    कवि ने लोरिक-चंदा की प्रेम कहानी को इस नृत्य का आधार बताया है। उन्होंने कहा है कि इस नृत्य में लोरिक और चंदा के प्रेम की कहानी को नृत्य और गीत के माध्यम से बयान किया जाता है। कवि ने इस कहानी को “जन मानस के बीच, चँदैनी पैठ जमाई” बताया है। यानी यह कहानी लोगों के दिलों में बसी हुई है।

    कवि ने चंदैनी नृत्य में विभिन्न प्रकार के वेशभूषा और अभिनय को भी दर्शाया है। उन्होंने कहा है कि इस नृत्य में पुरुष वेश धरकर नारी नृत्य करती हैं। कवि ने इस नृत्य को “ऊर्जा से भरपूर” बताया है और कहा है कि इसे देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

    कवि ने चंदैनी नृत्य को “तीन लाख जन साथ, बैठ के देखे नाचा” बताया है। यानी यह नृत्य एक बड़े समूह द्वारा किया जाता है और इसे देखने के लिए हजारों लोग इकट्ठा होते हैं।

    कविता का सार:

    यह कविता चंदैनी नृत्य की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस नृत्य को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें चंदैनी नृत्य के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    निष्कर्ष:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “चँदैनी पर रोला” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें चंदैनी नृत्य के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    अतिरिक्त जानकारी:

    • चंदैनी नृत्य आमतौर पर शादियों और अन्य विशेष अवसरों पर किया जाता है।
    • इस नृत्य में महिलाएं और पुरुष दोनों भाग लेते हैं।
    • चंदैनी नृत्य में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।
    • चंदैनी नृत्य को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

    यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

    यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

  • डंडा नृत्य पर कविता

    डंडा नृत्य पर कविता

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “डंडा नृत्य” छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय नृत्यों में से एक, डंडा नृत्य पर केंद्रित है। डंडा नृत्य छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है और यह नृत्य विशेष रूप से कार्तिक और फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर किया जाता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से डंडा नृत्य की सुंदरता, उसके पीछे की परंपरा और इसकी सांस्कृतिक महत्ता को उजागर किया है।

    डंडा नृत्य पर कविता

    डंडा नृत्य पर कविता

    काव्य विधा : –कुण्डलिया

    डंडा अपने राज्य का, लोक नृत्य है जान।
    जोड़ी में है नाचते, धोती कुर्ता तान । ।
    धोती कुर्ता तान, पहन घुटनों तक इनको ।
    बाँह धार जैकेट, शोभते पगड़ी जिनको ।।
    लहरी झूमें आज, हाथ में लेकर झंडा ।
    मोर पंख की झूल, हिले जब नाचे डंडा ।।

    डंडा नाचे लोग जब, करे खूब श्रृंगार ।
    बहुँटा साजे हाथ में, पग में घुँघरू धार ।।
    पग में घुँघरू धार, आँख में काजल आँजे।
    तिलक माथ पर साज, पान होठों पर भाँजे ।।
    कहते कुहकी एक, यही है इनका फंडा ।
    तेज ताल की थाप, नाचते लेकर डंडा ।।

    ठाकुर जी की वंदना, प्रथम करे कर जोर।
    मातु शारदे साथ में, श्री गणेश जय शोर।।
    श्री गणेश जय शोर , गीत है गाकर नाचे ।
    कार्तिक फाल्गुन माह, पूर्णिमा में शुभ बाँचे ।।
    रहते वृत्ताकार, नाचने को है आतुर ।
    छत्तीसगढी रास, मनाते सम्मुख ठाकुर ।।

    यह कविता डंडा नृत्य को एक उत्सव के रूप में चित्रित करती है जो लोगों को एक साथ लाता है और उनकी संस्कृति को जीवंत रखता है। कवि ने डंडा नृत्य को “लोक नृत्य” और “छत्तीसगढ़ी रास” कहा है। कवि ने इस नृत्य को “ठाकुर जी की वंदना” और “मातु शारदे” को समर्पित बताया है। कवि ने इस नृत्य में किए जाने वाले श्रृंगार और वेशभूषा का भी वर्णन किया है।

    कवि ने डंडा नृत्य में जोड़ियों में नाचने और हाथ में डंडा लेकर नाचने की प्रथा का भी उल्लेख किया है। उन्होंने कहा है कि इस नृत्य में लोग वृत्ताकार रूप में नाचते हैं और तेज ताल की थाप पर नाचते हैं। कवि ने इस नृत्य को “कुहकी एक” कहा है, जिसका अर्थ है कि यह एक विशेष प्रकार का नृत्य है।

    कवि ने डंडा नृत्य को कार्तिक और फाल्गुन महीने की पूर्णिमा से जोड़ा है। उन्होंने कहा है कि यह नृत्य इन महीनों में किया जाता है। कवि ने इस नृत्य को “शुभ बाँचे” कहा है, जिसका अर्थ है कि यह एक शुभ कार्य है।

    कविता का सार:

    यह कविता डंडा नृत्य की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस नृत्य को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें डंडा नृत्य के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    निष्कर्ष:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “डंडा नृत्य” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें डंडा नृत्य के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    अतिरिक्त जानकारी:

    • डंडा नृत्य में पुरुष और महिलाएं दोनों भाग लेते हैं।
    • डंडा नृत्य में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।
    • डंडा नृत्य को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

    यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

    यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

  • पंडवानी पर कविता

    पंडवानी पर कविता

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “पंडवानी” छत्तीसगढ़ की लोकप्रिय लोककला पंडवानी पर केंद्रित है। पंडवानी महाभारत की कथा को गायन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करने की एक अनूठी विधा है। कवि ने इस कविता के माध्यम से पंडवानी की सुंदरता, उसके पीछे की कहानियां और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।

    पंडवानी पर कविता

    पंडवानी पर कविता

    काव्य विधा : –रोला

    धरे तमूरा हाथ, सुनाते हैं मृदु बानी ।
    तीजन बाई तान, कहे हैं कथा कहानी ।।
    वेद व्यास महराज, महाभारत जो लिखते ।
    लिए वही आधार, पंडवानी में दिखते ।।

    करते पांडव गान, गायिका सुर को साजे ।
    हारमोनियम साथ, ढोल तबला भी बाजे ।।
    पग में घुँघरू वार, कथा कह ठुमके नाचे ।
    भाव भंगिमा साज, कथा का वाचन बाचे ।

    तीजन झाडूराम, शांति बाई है चेलक ।
    ऊषा बाई साथ, रहे रागी सुर मेलक।।
    दो शाखा है मान, वेदमति पहला मानो ।
    कापाली है साथ, दूसरा शाखा जानो ।।

    एक खड़े रह गान, वेदमति इसको कहते।
    बैठ करे सुर गान, इसे कापाली गहते ।।
    यही विधा पहचान, पंडवानी की जानो।
    मिला विश्व पहचान, रीतु तीजन सह मानो ।।

    व्याख्या:

    यह कविता पंडवानी को एक कला के रूप में चित्रित करती है जो लोगों को एक साथ लाता है और उनकी संस्कृति को जीवंत रखता है। कवि ने पंडवानी को “महाभारत” की कथा को गायन और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक माध्यम बताया है। कवि ने तीजन बाई, शांति बाई और ऊषा बाई जैसी प्रसिद्ध पंडवानी कलाकारों का उल्लेख करते हुए पंडवानी की परंपरा को आगे बढ़ाने में उनके योगदान को रेखांकित किया है।

    कवि ने पंडवानी की दो शाखाओं, वेदमति और कापाली का भी उल्लेख किया है। वेदमति शैली में पंडवानी कलाकार खड़े होकर गाती हैं, जबकि कापाली शैली में वे बैठकर गाती हैं। कवि ने पंडवानी को “विश्व पहचान” प्राप्त करने वाली कला बताया है और तीजन बाई को इस कला को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाने का श्रेय दिया है।

    कविता का सार:

    यह कविता पंडवानी की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस कला को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें पंडवानी के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    निष्कर्ष:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “पंडवानी” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें पंडवानी के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    अतिरिक्त जानकारी:

    • पंडवानी को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्पण कहा जाता है।
    • पंडवानी में गायिकाएं तार और ताल के साथ महाभारत की कथा को गाती हैं।
    • पंडवानी को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है।

    यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

    यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

  • ददरिया पर कविता

    ददरिया पर कविता

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” छत्तीसगढ़ के एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी यह कविता “ददरिया” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति और विशेषकर ददरिया गीत पर केंद्रित है। ददरिया छत्तीसगढ़ का एक लोकप्रिय गीत है जो अपनी भावुकता और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। कवि ने इस कविता के माध्यम से ददरिया गीत की सुंदरता, उसके पीछे की भावनाएं और इसकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर किया है।

    ददरिया पर कविता

    ददरिया पर कविता

    काव्य विधा : – रोला

    दर्द भरे हिय गीत, कहे हैं सुनों ददरिया।
    यह वियोग श्रृंगार, भरे हैं कहते तिरिया।।
    नर नारी मिल साथ, गीत में नाचे गाएँ।
    रहे पंक्ति दो जान, नैन दोनों मटकाएँ।।

    इक दूजे को साथ, प्रश्न हैं करते प्यारे।
    दूजा उत्तर देत, झूमके तन मन वारे।।
    भिन्न – भिन्न रख वाद्य, सदा उत्सव में गाते।
    प्रेम पीर की बात, सहज हिय तक पहुँचाते।।

    खेत और खलिहान, काम जब करते रहते।
    गीत ददरिया साथ, सुरों में साजे कहते।।
    यादव जी बृजलाल, ख्याति में नाम बनाये।
    है रिकार्ड में नाम, स्वयं ये कर दिखलाये।।

    एकल में भी लोग, गीत का गायन करते।
    करे कभी संवाद, युगल में भी हैं रहते ।।
    रानी कहते लोग, गीत की इसको जानो ।
    जुड़े दर्द हिय प्रांत , प्रेम में इसको मानो।।

    व्याख्या:

    यह कविता ददरिया गीत को एक भावुक गीत के रूप में चित्रित करती है जो लोगों के दिलों को छू लेता है। कवि ने ददरिया को “दर्द भरे हिय गीत” और “वियोग श्रृंगार” बताया है। इसका अर्थ है कि यह गीत प्रेम और वियोग की भावनाओं को व्यक्त करता है। कवि ने ददरिया को नर और नारी के बीच के रिश्ते का प्रतीक बताया है।

    कवि ने ददरिया को एक सामाजिक गीत भी बताया है जो लोगों को एक साथ लाता है। कवि ने कहा है कि लोग ददरिया गाते हुए नाचते हैं और एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं। कवि ने ददरिया को “खेत और खलिहान” में गाए जाने वाले गीत के रूप में भी चित्रित किया है। इसका अर्थ है कि ददरिया लोगों के दैनिक जीवन का एक हिस्सा है।

    कवि ने ददरिया को एक ऐसी कला बताया है जो लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है। कवि ने कहा है कि ददरिया गीत लोगों के दिलों में प्रेम और दर्द की भावनाओं को जगाता है।

    कविता का सार:

    यह कविता ददरिया गीत की सुंदरता और महत्व को उजागर करती है। कवि ने इस गीत को छत्तीसगढ़ की संस्कृति का एक अनमोल रत्न बताया है। यह कविता हमें ददरिया गीत के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    निष्कर्ष:

    शिवकुमार श्रीवास “लहरी” की यह कविता “ददरिया” छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक संस्कृति का एक खूबसूरत उदाहरण है। यह कविता हमें ददरिया गीत के बारे में अधिक जानने और इसकी सराहना करने के लिए प्रेरित करती है।

    अतिरिक्त जानकारी:

    • ददरिया आमतौर पर महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
    • ददरिया में विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोलक, मंजीरा और बांसुरी।
    • ददरिया को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

    यह व्याख्या केवल एक संक्षिप्त विवरण है। कविता की गहराई से व्याख्या करने के लिए, आपको कविता का पूरी तरह से विश्लेषण करना होगा।

    यदि आपके मन में कोई अन्य प्रश्न हैं, तो बेझिझक पूछें।

    रोला छंद के बारे में:

    रोला छंद दोहे का ही एक रूप है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 13 अक्षर होते हैं।

    कविता में रोला छंद का प्रयोग:

    कवि ने इस कविता में रोला छंद का प्रयोग कर भावों को अधिक प्रभावशाली तरीके से व्यक्त किया है। रोला छंद की लय और ताल ददरिया गीत की भावनाओं को बखूबी बयां करती है।

    कविता का सारांश:

    कवि ने इस कविता में ददरिया गीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने का प्रयास किया है। उन्होंने ददरिया को एक ऐसे गीत के रूप में चित्रित किया है जो लोगों के दिलों को छू लेता है और उन्हें एक साथ लाता है।