Author: कविता बहार

  • दहेज पर कविता

    दहेज पर कविता

                  
    बेटी कितनी जल गई ,
                   लालच अग्नि  दहेज ।
    क्या जाने इस पाप से ,
                     कब होगा परहेज ।।
    कब होगा परहेज ,
                  खूब होता है भाषण ।
    बनते हैं कानून ,
                नहीं कर पाते पालन ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
        .      रिवाजों की बलि लेटी ।
    रहती  है  मायूस ,
                   बैठ  मैके  में  बेटी ।।
                ~  रामनाथ साहू ” ननकी “
                     मुरलीडीह ( छ. ग. )
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  • हम तुमसे प्यार करते हैं

    हम तुमसे प्यार करते हैं

    हाँ यही सच है हम तुमसे प्यार करते हैं
    जानेजाना हाँ यही सच है तुमपे मरते हैं
    तुम न होते हो तो तस्वीर से बतियाते हैं
    दिल के नज़दीक ला हम धड़कन तुम्हें सुनाते हैं
    होश खो देते हैं तुम्हेँ सामने जब पाते हैं
    बेख़ुदी में तुम्हें ही सोच मुस्कुराते हैं
    पास आ जाओ तुम्हारा इंतज़ार करते हैं
    हाँ यही सच……
    बहुत अरमान सजाएं हैं दिल ने तेरे लिए
    बज उठे आज दिल के साज सनम तेरे लिए
    बोलो न तेरा दिल भी धड़का है क्या मेरे लिए
    रातों को जगती हूँ मैं तू जगता है क्या मेरे लिए
    तेरे क़दमों में सनम जाँ अपनी निसार करते हैं
    हाँ यही सच…
    बहुत शिद्द्त है ‘चाहत’ है मोहब्बत है
    तेरे ही दम से ज़िन्दा हैं यही हकीकत है
    तू ही रहबर है यार तू ही अब इबादत है
    इश्क़ है सच्चा मेरा ये नहीं तिज़ारत है
    तुम नहीं बेवफ़ा इसपर ऐतबार करते हैं
    हाँ यही सच…….


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी
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  • सुनो तुम आ जाओ न

    सुनो तुम आ जाओ न

    सुनो तुम आ जाओ न
    कुछ अपनी भी सुनाओ न
    खफ़ा खफ़ा से लगते हो
    थोड़ा सही मुस्कुराओ न
    यहाँ लोग बातें बनाते हैं
    निगाहों को नहीं मिलाओ न
    बेख़ौफ़ हम रहते हैं मगर
    तुम तन्हा नहीं बुलाओ न
    ज़िक्र मेरा हर सू करते हो
    कुछ तो राज़ छुपाओ न
    पल जो साथ गुज़ारे थे
    यूँ उनको नहीं भुलाओ न
    रोज़ ख्वाबों में आते जाते हो
    मुझे ऐसे नहीं सताओ न
    माना कि हमराज़ हैं तुम्हारे
    कभी हमसे भी शर्माओ न
    मुस्कुराते ही घायल कर देते हो
    यूँ बिजली नहीं गिराओ न
    चाँद तो प्रतिबिम्ब महबूब का होता
    मुझे चाँद में दिख जाओ न
    गर ‘चाहत’ है इक नशा
    आँखों से मुझे पिलाओ न


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी
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  • कुण्डलिया

    कुण्डलिया

    अंदर की यह शून्यता ,
                         बढ़ जाये अवसाद ।
    संशय विष से ग्रस्त मन ,
                         ढूढ़े  ज्ञान  प्रसाद ।।
    ढूढ़े   ज्ञान  प्रसाद ,
               व्यथित मन व्याकुल होता ।
    आत्म – बोध से दूर ,
        …     खड़ा    एकाकी    रोता ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ ,
                 सतत शुचिता  अभ्यंतर ।
    कृपा  करें  जब  संत ,
                  बोध  होता  उर  अंदर ।।
                        ~  रामनाथ साहू ” ननकी “
                               मुरलीडीह (छ. ग. )
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  • पानी के रूप

     पानी के रूप

    sagar
    sagar

    धरती का जब मन टूटा तो 
    झरना बन कर फूटा पानी 
    हृदय हिमालय का पिघला जब 
    नदिया बन कर बहता पानी ।।

    पेट की आग बुझावन हेतु 
    टप टप मेहनत टपका पानी 
    उर में दर्द  समाया जब जब 
    आँसू बन कर बहता पानी ।।

    सूरज की गर्मी से उड़ कर 
    भाप बना बन रहता पानी 
    एक जगह यदि बन्ध जाए तो 
    गगन मेघ रचता है पानी ।।

    धूल कणों से घर्षण करके 
    वर्षा बन कर गिरता पानी 
    धरती पर कलकल सा बह कर 
    सबकी प्यास बुझाता पानी ।।

    धरती के भीतर से आ कर 
    चारों ओर फैलता  पानी 
    कहीं झील कहीं बना समंदर 
    सुंदर धरा बनाता पानी ।।

    अपनी उदार वृत्ति से देखो 
    सबको जीवित रखता पानी 
    कहीं बखेरी हरियाली तो 
    अन्न अरु फूल उगाता पानी ।।

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    सुशीला जोशी 

    मुजफ्फरनगर

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