मेरी मातृभूमि
स्वर्ग से सुंदर भू भारती ।
भानु शशि नित्य करे आरती ।।
गौरव गान श्रुति वेद करते ।
प्रातः नमन ऋषि हृदय भरते ।।
उर्वर भूमि सजी इठलाती ।
श्रम बिन्दु से प्यास बुझाती ।।
सौंधी सुगंध पवन मचलते ।
मंजु मधुक मधु कंठ विहरते ।।
देवभूमि हे दिव्य रसोमय ।
साधक जीवन करती निर्भय ।।
प्राची हिमाद्रि उतंग श्रेणी ।
प्रगटी जहाँ सुरसरि त्रिवेणी ।।
जलधि पद को अविराम धोते ।
रक्षक खड़े अब तक न सोते ।।
सुख समृद्धि धानी आँचल ।
करती कृपा सदा बन बादल ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
मुरलीडीह ( छ ग )
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