बचपन की यादें -साधना मिश्रा

बचपन की यादें -साधना मिश्रा

बाल दिवस पर कविता
बाल दिवस पर कविता

वो वृक्षों के झूले वो अल्हड़ अठखेलियां।
वो तालाबों का पानी वो बचपन की नादानियां।

वो सखाओं संग मस्ती वो हसीं वादियां।
वो कंचा कंकड़ खेलना वो लड़ना झगड़ना।

वो छोटा सा आंगन वो बारिश का पानी।
वो कागज की नाव वो दादी की कहानी।

याद आती मुझे वो मीठी शरारतें।
वो खुशदिल तबस्सुम वो ठिठोली की बातें।

वक्त ने मुझको समझदार है कर दिया।
सफेद गेसुओं का सौगात दे दिया।

खो गईं बेफिक्री वो सब्ज शोखियां।
रह गईं उम्र की वर्जना वंदिशियाँ।

पर भूलीं नहीं वो बचपन की नादानियां
वो वृक्षों के झूले वो अल्हड़ अठखेलियां।

साधना मिश्रा, रायगढ़- छत्तीसगढ़

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  1. “वक्त ने मुझको समझदार कर दिया
    सफेद गेसुओं का सौगात दे दिया ! ”
    समझदारी का उपहार सफेद केश तो दे दिया
    समझदारी का कुछ भाग चुराकर भी रख लिया
    तभी तो आँख मिलाने की शोख गुस्ताखियाँ..
    अभी तक कुछ कर लेती हैं नादानियाँ ।
    (मैं कवि नहीं हूँ… दिल कवि का है तभी तो आँखों में प्यार शेष है।)

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