बदरी – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
प्रकृति ने ली अंगडाई है
चहुँ ओर बदरी छाई है
ग्रीष्म को बिदाई मिल रही
चहुँ और बूँदें पड़ रही
करो वर्षा का आगमन
करो बूंदों से आचमन
प्रकृति की छटा निराली हो रही
चहुँ और बूँदें पड़ रही
हम बादलों को चूम लें
पंछी ये गीत गा रहे
इस अवसर को हम न गवाएं
बादलों का साथ निभाएं
चहुँ और हरियाली खिलाएं
आओ हम मिल पेड़ लगाएं
कितना सुन्दर है ये आलम
हो रही चहुँ और रिमझिम
कोयल की कुक प्यारी
खिल रही है क्यारी-क्यारी
प्रकृति के हम ऋणी हैं
जिसने चहुँ और शांति दी है
बच्चों के भीगे तन-मन
झूमें सबके तन-मन
ये वर्षा का आगमन
प्रक्रति को करो नमन