भाई के कलाई में बांधने को प्यार से रक्षाबंधन (RAKSHYABANDHAN PAR KAVITA)

रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

भाई के कलाई में बांधने को प्यार से रक्षाबंधन

आई है बिटिया ,आई है बहना अपने घर आंगन।
भाई के कलाई में बांधने को, प्यार से रक्षाबंधन।
गूंजने लगी खुशियाँ, चहुंदिक् अति मनभावन ।
रिमझिम ठण्डी फुहारों में भिगाेती अंतिम सावन।

बहना आरती थाल लिये, देती भाई को बधाईयां।
माथे तिलक लगा ,रक्षासूत्र से सजाती कलाईयां।
भाई भी उपहारस्वरूप,हाथ बढ़ा के दे यह वचन।
मेरे रहते कष्ट ना होगी, तेरे सपने पूरे करूँ बहन।।

भाई-बहन के पवित्र प्यार का, है रक्षाबंधन त्यौहार।
रंग बिरंगी राखियों से, सजने लगा है सारा संसार।।
वस्तुतः सबकी धरती माँ , सब प्राणी है भाई बहना।
आओ एक दूजे की रक्षा कर, बने धरा की गहना।।

मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

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