भावनाओं को कुछ ऐसा उबाल दो
भावनाओं को
कुछ ऐसा उबाल दो।
जनता न सोचे
सत्ता के बारे में,
उसके गलियारे में,
नित नये
सवाल कुछ उछाल दो।
खड़ा कर दो
नित नया उत्पात कोई।
भूख और प्यास की
कर सके न बात कोई।
शान्ति से क्यों सांस ले रहा
कोई शहर।
घोल दो हवाओं में
नित नया जहर।
अट्टालिकाओं की तरफ
उठे अगर
कोई नजर
दूर सीमाओं पर
उठा नया भूचाल दो।
एक सीख सीख लो।
छोटी लंकीर के सामने
बड़ी लकीर खींच दो।
नहीं मिटती गरीबी देश की
जन में
विभाजन की
भावनाएं सींच दो।
खींच दो दीवार
बाँट दो परिवार
धर्म, भाषा, जाति का
फिर नया बबाल दो।
रामकिशोर मेहता