भ्रूण हत्या पर कविता

भ्रूण हत्या पर कविता

भ्रूण हत्या का मचा एक नीरव रोर है,
चोरी छिपे लिंग जाँच हर दिशा हर ओर है।
जाने क्यों बेटी की हत्या का शौक ये चढ़ आया,
गर्भ में ही भेदभाव का ये कृत्य सबको भाया।


अपने ही कोख के अंश का माँ गला घोंट देती है,
लिंग जाँच में बेटा हो तो हत्या रोक लेती है,
लड़की के आने की खबर आहत उसे कर जाती है,
माता -पिता दोनों की आत्मा अति व्याकुल हो जाती है।


जब तक भ्रूण  मिटा न डाला नींद उन्हें नहीं आती है,
चंद स्वार्थों की खातिर रक़्तिम हत्या की जाती है,
बेचारी लड़की गर्भ में गिड़गिड़ाती है,
माँ तू मुझे दुनिया में क्यों नहीं आने देती है।


माँ मुझको भी दुनिया में आने दे माँ,
बस एक बार कली से फूल बन जाने दे माँ,
लड़का-लड़की एक समान है ये सोच तू भी अपना ले माँ,
मत कर कोख में मेरी हत्या,
अस्तित्व मुझे पा जाने दे माँ।


हर माँ यदि लड़की न चाहे,
दुनिया भला चल पाएगी?
सिर्फ पुरुषों से क्या जग चलता है?
कब हर माँ यह समझ पाएगी,
लड़की भावी नारी बनकर
जीवन में मधुरस भरती है माँ
जन्मदात्री है मानव की, सर्वस्व समर्पित करती है माँ।


माँ तू भी नारी मैं भी भावी नारी,
फिर कैसी है ये लाचारी,
भ्रूण हत्या नहीं रुकी तो
नारी विहीन होगी वसुधा हमारी।


नाम- कुसुम लता पुंडोरा

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