भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद
साधे बेटी मौन को, करती एक गुहार।
जीवन को क्यों छीनते ,मेरे सरजनहार।
मेरे सरजनहार,बतायें गलती मेरी।
कहँ भू पर गोविंद , करे जो रक्षा मेरी।
“कुसुम”कहे समझाय , पाप जीवन भर काँधे।
ढोवोगे दिन रैन ,दुःख यह मौनहि साधे।
पुष्पा शर्मा “कुसुम”