Category हिंदी कविता

हिंदी मेरी भाषा -रूपेश कुमार

हिन्‍दी दिवस 14 सितम्बर को  देशभर में मनाया जाता है। 1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में हिन्‍दी को देश की राजभाषा के रूप में स्‍वीकार किया था। हिन्‍दी विश्‍व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में एक है और 52 करोड से अधिक लोगों की पहली भाषा है।

होड़ लगी है विश्व में करें इकट्ठा शस्त्र

होड़ लगी है विश्व में करें इकट्ठा शस्त्र होड़ लगी है विश्व में, करें इकट्ठा शस्त्र।राजनीतिक होने लगी,खुले आम निर्वस्त्र।। सीमाएँ जब लाँघता,है सत्ता का लोभ।जन-मन को आक्रांत कर,पैदा करता क्षोभ।। सत्ताधारी विश्व के, पैदा करें विवाद ।शांति हेतु अनिवार्य…

दादा जी पर कविता

दादा जी पर कविता दादा जी के संग में , इस जीवन के ज्ञान ।मेरे सच्चे मित्र सम ,जाते हैं मैदान ।।जाते हैं मैदान ,खेल वो मुझे सिखाते ।प्रेरक गहरी बात , कहानी रोज सुनाते ।।कह ननकी कवि तुच्छ ,…

धन्य वही धन जो करे आत्म-जगत् कल्याण

धन्य वही धन जो करे आत्म-जगत् कल्याण धन्य वही धन जो करे, आत्म-जगत् कल्याण।करे कामना धर्म की,मिले मधुर निर्वाण। संग्रह केवल वस्तु का,विग्रह से अनुबंध।सुविचारों की संपदा,से संभव संबंध।। धन-दौलत के साथ ही,बढ़ता क्यों अपराध।कठिन दंड भी शांति को,कहाँ सका…

तिजा उपास (हास्य कविता)

तिजा उपास (हास्य कविता) तिजा उपास रहे बर, काल करू भात खाय हे ।बिहना ले दरपन ला संगवारी बनाय हे।। 1 क‌ई किसीम रोटी पीठा झटपट बनात हे ।उठ उठ के आत हे, लस ले सुत जात हे।। 2 ल‌इका…

तोड़े हुए रंग-बिरंगे फूल :नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

तोड़े हुए रंग-बिरंगे फूल टीप-टीप बरसता पानीछतरी ओढ़ेसुबह-सुबह चहलकदमी करतेघर से दूर सड़कों तक जा निकलादेखा–सड़क के किनारेलगे हैं फूलदार पौधे कईपौधों पर निकली हैं कलियाँ कईमग़र कहीं भीदूर-दूर तक पौधों परखिले हुए फूल एक भी नहींसहसा नजरें गईनहाए न…

स्वभाव पर कविता

स्वभाव पर कविता पचा लेता है विष,उसको सुधा में ढाल देता है,अँधेरा हो जहाँ दीपक जतन से बाल देता है । ये छोटी मछलियाँ हैं खैर ये कब तक मनायेंगी,बड़ी मछली के हाथों में शिकारी जाल देता है। अमन का…

विघटन पर कविता

विघटन पर कविता विघटन की चलती क्रिया , मत होना हैरान ।नियम सतत् प्रारंभ है , शायद सब अंजान ।।शायद सब अंजान , बदलते  गौर करो तुम ।आज अभी जो प्राप्त , रहे कल होकर ही गुम ।।कह ननकी कवि…

मूर्ख कहते हैं सभी

मूर्ख कहते हैं सभी मूर्ख कहते हैं सभी,उसका सरल व्यवहार है,ज्ञान वालों से जटिल सा हो गया संसार है। शब्द-शिल्पी,छंद-ज्ञाता,अलंकारों के प्रभो!क्या जटिल संवाद से ही काव्य का श्रृंगार है? जो नपुंसक हैं प्रलय का शोर करते फिर रहे,नव सृजन तो…