तिजा उपास (हास्य कविता)

तिजा उपास (हास्य कविता)

तिजा उपास रहे बर, काल करू भात खाय हे ।
बिहना ले दरपन ला संगवारी बनाय हे।। 1

क‌ई किसीम रोटी पीठा झटपट बनात हे ।
उठ उठ के आत हे, लस ले सुत जात हे।। 2

ल‌इका मन रोटी के,सुगंध ला पात हे ।
सुंग सुंग ल‌इका मन चुलहा तीर जात हे।। 3

देत न‌इए कहिके ल‌इका रिसात हे।
बिल‌ई हा धूरिहा ले म‌ऊ म‌ऊ नरियात हे ।।4

सुन के काव-काव तिजहारिन क‌उवाय हे ।
एक तो कोरोनावायरस सब ला फंसाय हे ।।5

देवत हे खाना फेर लागथे गुस्साए हे ।
भ‌इया हा डर मा चुपचाप सकलाय हे ।। 6

झर्रस ला पटकत हे थारी ला भ‌उजी ।
दिन भर उपास हे निरजल्ला ग‌उकी ।। 7

हमुमन देखत हन ,आंखी-मुंह फार के।
क‌ब करही पूजा दिया बाती बार के ।।8

धीरे धीरे अब एदे रथिया गझात हे।
जागे न‌‌इ सकंव मोर आंखी मुंदात हे।। 9

अब जाने तिजहारीन,काय विचार जमाय हे।
फेर तिजा उपास रहे बर काल करू भात खाय हे ।।10

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