दुर्गा मैया पर कविता – सुशी सक्सेना

दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवी, शक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

durgamata

दुर्गा मैया पर कविता

आओ मईया मेरी, शेर पर होकर सवार।
क्या हो गया है, देखो तेरे जगत का हाल।

जाओ मईया जरा उस दिशा की ओर,
नफ़रत के सिवा जहां, नहीं कुछ और,
आपस में लड़ रही हैैं तेरी ये संतान,
इतनी विनती करूं मैं जोड़ के दोनों हाथ,
इनके दिलों में फिर से, जगा दे प्यार।

मां रक्तबीज का खून अभी भी बाकी है,
मानव के अंदर का हैवान अभी भी बाकी है,
वध कर दो मईया उस दानव का, फिर
देखो एक अच्छा इंसान अभी भी बाकी है,
है यही अरज हमारी, जग को रखो खुशहाल।

ग़रीबी और महामारी का फैला है प्रकोप,
देखो प्रकृति का हम सब, सह रहे कोप
माफ़ करो गलती हमारी, सब दुख करो दूर
निर्धन को धन दे दो, बाछिन को दो पूत,
झोली जो भी फैलाए, उसको देना दान।

नमन तुम्हारे चरणों में, एक मेरी भी मुराद।
सारे जग के साथ, मेरा भी करो बेड़ा पार।

( स्वरचित एवं मौलिक )
सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश

सुशी सक्सेना

यह काव्य संकलन उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में अवतरित लेखिका सुशी सक्सेना के सहयोग से हो पाई है । अभी आप इंदौर मध्यप्रदेश में हैं । अभी आप अवैतनिक संपादक और कवयित्री के रूप में kavitabahar.com में अपना सेवा दे रही है। आपकी लिखी शायरियां और कविताएं बहुत सी मैगजीन और न्यूज पेपर में प्रकाशित होती रहती हैं। मेरे सनम, जिंदगी की परिभाषा, नशा कलम का, मेरे साहिब, चाहतों की हवा आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

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