फूफा रिश्ता पर कविता

(बिहाव के सम्मे म फूफा के अलगेच रउब रईथे। काबरकि ओहर तईहा के भांटो मतलब  “सियान के भांटो” रईथे।
अऊ ओकर सियानी के  दिन काल भागत रईथे। तेकर जगह म मोर भांटो के पदवी आत रईथे । ओला ओहर सहन नई करन सके।
तिकर पाय बर ए कविता ल प्रयास करे गय हे:-)

फूफा रिश्ता पर कविता

ऐ दे !फूफा मोर, उमर म बुड़वा गिस ने।
अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।
चेहरा म नईये जी बहार ।
लागे जइसे पड़गिस ने दियार।
आगु-पाछु म बुलत हे दु-चार।
करत फिरत हावे फूफा संग मनुहार ।
थोरकिन हाँसी-ठिठोली म ओहर बमा गिस ने।
अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।।
कनी-कनी बात म तमकत हे।
फूफी के गारी म चमकत हे।
का बात म फरक खाईस हे?
कोनहा म जाकें बमकत हे।
खिसियाय अऊ तंगाय, भांटो ल मोर कवाँ दिस ने।
अऊ बिहाव म देखत हस, बउरा गिस ने।।
( रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना )

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