ग़ज़ल -विनोद सिल्ला

कैसी-कैसी  हसरत  पाले  बैठे  हैं।
गिद्ध नजर जो हम पर डाले बैठे हैं।।
इधर कमाने वाले खप-खप मरते हैं,
पैसे   वाले   देखो   ठाले   बैठे   हैं।।
खून-पसीना  खूब  बहाते  देखे  जो,
उनसे  देखो  छीन  निवाले  बैठे  हैं।।
नफरत  करने  वाले  दोनों  और रहे,
कुछ मस्जिद तो बाकि शिवाले बैठे हैं।।
खेत  कमाते  मिट्टी  में  मिट्टी  होकर,
सेठ  बही  में  कर्ज  निकाले  बैठे  हैं।।
राशन रहता खत्म हमेशा ही इनका,
घर  में  भोजन  खाने  वाले  बैठे हैं।।
पैसे  का ही खेल तमाशा है जग में,
बिन  पैसे सब आंख दिवाले बैठे हैं।।
सिल्ला मरना इतना भी आसान नहीं,
जितना  जीवन  को  संभाले  बैठे  हैं।।
-विनोद सिल्ला
