गीता सार पर कविता

गीता सार पर कविता

नाहक तू शोक मनाय ,     डरता तू अकारन।
आत्मा अजर अमर बंधु, कौन सकता मारन?


जो होता अच्छा होता, मत कर तू संताप।
खोखला कर दे मनुवा ,भूत का पश्चाताप।।


क्या खो दिया जो लाया, किस बात की विलाप।
यही लेकर दिया तुने,      कर भगवन का जाप ।।

मुट्ठी बंद कर आया तू, जाना खाली हाथ ।
आज तुम्हारे पास में, कल न रहे वो साथ ।।


लगा रहे जीवन मरण , यही सांसारिक नियम ।
छोटा बड़ा को तज के , अपना ले तू सयंम।।


ये शरीर ना तुम्हारा , नहीं शरीर के तुम ।
पञ्चतत्व में मिलेगा , प्राण जायेगा गुम।।


भगवान को कर अर्पण ,     यह सहारा उत्तम।
जो जाने इस बात को , ना भय-चिंता, ना गम।।

मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

Leave a Reply