गीता सार पर कविता

गीता सार पर कविता

नाहक तू शोक मनाय ,     डरता तू अकारन।
आत्मा अजर अमर बंधु, कौन सकता मारन?


जो होता अच्छा होता, मत कर तू संताप।
खोखला कर दे मनुवा ,भूत का पश्चाताप।।


क्या खो दिया जो लाया, किस बात की विलाप।
यही लेकर दिया तुने,      कर भगवन का जाप ।।

मुट्ठी बंद कर आया तू, जाना खाली हाथ ।
आज तुम्हारे पास में, कल न रहे वो साथ ।।


लगा रहे जीवन मरण , यही सांसारिक नियम ।
छोटा बड़ा को तज के , अपना ले तू सयंम।।


ये शरीर ना तुम्हारा , नहीं शरीर के तुम ।
पञ्चतत्व में मिलेगा , प्राण जायेगा गुम।।


भगवान को कर अर्पण ,     यह सहारा उत्तम।
जो जाने इस बात को , ना भय-चिंता, ना गम।।

मनीभाई नवरत्न

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