गीतिका छंद पर सृजन -देवता
देवता मन में बसे हैं, ढूँढ़ने जाएँ कहाँ।
पूजते मन में सदा हैं, पूजने जाएँ कहाँ।।
भाव ही हैं द्रव्य सारे , भाव से आराधना।
भाव से भर शब्द प्यारे ,नित्य कर लें प्रार्थना।।
क्या करें अर्पण उन्हें हम, है सभी उनका दिया।
तन उन्हीं का मन उन्हीं का, जो कराया वह किया।।
कर्म का अभिमान फिर क्यों, इस जगत में हम करें।
मान या अपमान मिलता, ले चरण में हम धरें।।
हम सदा से हैं उन्हीं के, और उनके ही रहें।
जानते सब वो हृदय की, हम भला फिर क्यों कहें।।
शरण में उनके रहें हम, भाव का दीपक जला।
जो उचित प्रेरित करेंगे, जगत का जिसमें भला।। *
----गीता उपाध्याय'मंजरी'*
*रायगढ़ छत्तीसगढ़*