Category: हिंदी कविता

  • जब भी सुनता हूँ नाम तेरा- निमाई प्रधान’क्षितिज

    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा

    तेरे आने की आहटें… 
    बढ़ा देती हैं धड़कनें मेरी !
    मैं ठिठक-सा जाता हूँ-
    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!

    तेरे इश्क़ के जादूओं का असर..यूँ रहा
    मेरी रूह बाहर रही,मैं ही तो अंदर रहा 
    ख़ुद से मिलने को अक्सर…
    मैं बहक-सा जाता हूँ-
    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!

    मरु-थल में भी गुलों की बारिश 
    तेरे संग होने की रही है ख़्वाहिश
    पलाश में गुलाबों का इत्र पाकर
    मैं महक-सा जाता हूँ-
    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!

    ख़यालों की दुनिया से ज्यों चौंककर भागा
    तेरी पायलों की धुन में बेसुध-मन ; नाचा
    ख़ुद में, बेख़ुदी में..
    मैं यूँ ही गुनगुनाता हूँ-
    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!

    इक भीनी-सी ख़ुशबू…दूर तलक से
    ज़मीं से नहीं; है जब आती फ़लक से 
    अंतर्मन के उच्छवासों में फिर 
    मैं तुमको पा जाता हूँ-
    जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
    © निमाई प्रधान’क्षितिज’
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  • नई राह पर कविता- बांकेबिहारी बरबीगहीया

    नई राह पर कविता

    धन को धर्म से अर्जित करना
    तुम परम आनंद को पाओगे।
    सुख, समृद्धि ,ऐश्वर्य मिलेगी
     तुम धर्म ध्वजा फहराओगे।
    जीवन खुशियों से भरा रहेगा
    यश के भागी बन जाओगे ।
    अपने धन के शेष भाग को
    दान- पुण्य कर देना तुम ।
    दीन दुखियों की सेवा करके
    निज जीवन धन्य कर लेना तुम।

    सत्य,धर्म,तप,त्याग तुम करना
    हर सुख जीवन भर पाओगे ।
    प्रेम सुधा रस खूब बरसाना
    हरि के प्रिय तुम बन जाओगे।
    कर्तव्य के पथ पर सदा हीं चलना
    तुम महान मनुज कहलाओगे ।
    परमार्थ के लिए अपने आप को
    निसहाय के बीच सौंप देना तुम।
    दीन दुखियों की सेवा करके
    निज जीवन धन्य कर लेना तुम।।

    धन को धर्म के पथ पे लगाना
    सद्ज्ञान,सद्बुद्धि तुम पाओगे।
    प्रिय बनोगे हर प्राणी का
    आनंद विभोर हो जाओगे
    धरती पर हीं तुम्हें स्वर्ग मिलेगी
    फिर प्रभु में लीन हो जाओगे।
    दुर्बल,विकल ,निर्बल,दरिद्र का
    साथ सदा हीं देना तुम ।
    दीन दुखियों की सेवा करके
    निज जीवन धन्य कर लेना तुम।।

      बाँके बिहारी बरबीगहीया

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  • कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली / विनोद सिल्ला

    कैसी दीवाली किसकी दीवाली
    जेब भी खाली बैंक भी खाली

    हर तरफ हुआ है धूंआ-धूंआ
    पर्यावरण भी दूषित है हुआ

    जीव-जन्तु और पशु-पखेर
    आतिशी दहशत में हुए ढेर

    कितनों के ही घर बार जले
    निकला दीवाला हाथ मले

    अस्थमा रोगी तड़प रहे हैं
    उन्मादी अमन हड़प रहे हैं

    नकली मावा, नकली पनीर
    खाई मिठाई हो कर अधीर

    लूट-खसोट को सजा बाजार
    जहाँ लूटते हैं बिना हथियार

    हर चौक पर हैं टूने-टपूने
    अंधविश्वास. पाखंड हुए दूने

    सिल्ला कैसा बढ़ा उन्माद
    लड़ी पटाखे घातक उत्पाद

    कैसी दीवाली किसकी दीवाली
    जेब भी खाली बैंक भी खाली

    -विनोद सिल्ला

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  • मिल कर दिवाली को मनाएँ हम- प्रवीण त्रिपाठी

    मिल कर दिवाली को मनाएँ हम

    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।*

    *करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।*

    *भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।*

    *जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।*

    *चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।*

    *करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।*

    *लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।*

    *लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।*

    *जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।*

    *उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।*

    *गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।*

    *चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।*

    *उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।*

    *लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।*

    *बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।*

    *दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।*

    *उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4*

    *चलो इस बार फिर मिल कर…..*

    *चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।*

    *हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।*

    *प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019*

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    चलो इस बार फिर मिल कर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    मिटायें सर्व तम जो भी, दिलों में है भरा कब से।
    करें उज्ज्वल विचारों को, खुरच कर कालिमा मन से।
    भरें नव तेल नव बाती, जगे उत्साह तन मन में।
    जतन से दूर कर लें हम, उदासी सर्व जीवन से।
    चलो घर द्वार को मिल कर, दिवाली पर सजाएँ हम।1
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    छिपा मन में कहीं जो मैल, रिश्तों में लगे जाले।
    करें अब दूर वो मतभेद, देते पीर बन छाले।
    लगायें प्रेम का मलहम, विलग नाते पुनः जोड़ें।
    लगा कर प्रेम की चाभी, दिलों के खोल दें ताले।
    जला कर नेह का दीपक, तिमिर मन का भगायें हम।2
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    न छूटे एक भी कोना, नहीं कुछ भी अँधेरों में।
    उजाले हाथ भर-भर कर, चलो बाँटें बसेरों में।
    गरीबों को मिले भोजन, करें घर उनके भी रोशन।
    चलो मिल बाँट दे खुशियाँ, दिखें सब को सवेरों में।
    उघाड़ें स्याह परतों को, पुनः उजला बनायें हम।3
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    करें हम याद रघुवर को, किया वध था दशानन का।
    लखन सीता सहित प्रभु ने, किया था वास कानन का।
    बरस पूरे हुए चौदह, अवध में राम जब लौटे।
    दिवाली पर करें स्वागत, रमा के सँग गजानन का।
    उसी उपलक्ष्य में तब से, दिवाली को मनाएँ हम।4
    चलो इस बार फिर मिल कर…..

    चलो फिर आज खुश होकर, दिवाली को मनाएँ हम।
    हमारा देश हो रोशन, दिये घर-घर जलाएँ हम।

    प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, 27 अक्टूबर 2019
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  • कवयित्री वर्षा जैन “प्रखर” आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    आस का दीपक जलाये रखने की शिक्षा

    दीपावली की पावन बेला
    महकी जूही, खिल गई बेला
    धनवंतरि की रहे छाया
    निरोगी रहे हमारी काया
    रूप चतुर्दशी में निखरे ऐसे
    तन हो सुंदर मन भी सुधरे

    महालक्ष्मी की कृपा परस्पर
    हम सब पर हरदम ही बरसे
    माँ लक्ष्मी के वरद हस्त ने
    इतना सक्षम हमें किया है
    दिल में सबके प्यार जगाएं
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें

    चहुँ ओर है आज दीवाली
    दीपोत्सव की सजी है थाली
    किसी के आँगन में है खुशियाँ 
    किसी का आँगन हो गया खाली
    आओ मिलकर हाथ बढ़ाएं
    सबका आँगन भी चमकाएं

    नौनिहालों को बाँटे खुशियाँ
    उनके घर भी मने दीवाली
    दिये तले क्यूँ रहे अंधेरा
    उसको क्यों तम ने है घेरा
    आस का एक दीपक जलाएँ
    अपनी खुशियाँ चलो बाँट आयें


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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