खुशियों के दीप
असंभावनाओ में संभावना की तलाश कर
आओ एक नया आयाम स्थापित करें।
मिलाकर एक दूसरे के कदम से कदम
आओ हम मिलकर खुशियों के दीप जलाये।।
निराशाओं के भवंर में डूबी कश्ती में
फिर से उमंग व आशा की रोशनी करे ।
हताश होकर बैठ गये जो घोर तम में
उनकी उम्मीदों के दीप प्रज्वलित करें ।
रूठ गये हैं जो जैसे टूट गये हैं
उनमें अपनापन का अहसास भरें।
भूल गये हैं भटक गये हैं मानवता से
आओ संस्कारो का नव निर्माण करें ।
स्नेह,प्रेम व भाईचारे की वीर वसुंधा पर
आओ नित नये कीर्तिमान स्थापित करें।
रिश्तों से महकती इस प्यारी बगिया पर
आओ दीप से दीप प्रज्वलित करें ।
वध कर मन के कपटी रावण का
निश्छल व सत्यव्रत को परिमार्जित करें।
त्याग कर गृह क्लेश व राग द्वेष की भावना
समृद्धि सृजित गृह लक्ष्मी का आह्वान करें ।
हो नित नव सृजन, उन्नति फैले चहुओर
खुशियां हो घर घर ऐसा उज्जाला करें।
मिलाकर एक दूसरे के कदम से कदम
आओ हम मिलकर खुशियों के दीप जलाये।।
एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद