Category: हिंदी कविता

  • खुशियों के दीप-एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’

    खुशियों के दीप

    असंभावनाओ में संभावना की तलाश कर
    आओ एक नया आयाम स्थापित करें।
    मिलाकर एक दूसरे के कदम से कदम
    आओ हम मिलकर खुशियों के दीप जलाये।।

    निराशाओं के भवंर में डूबी कश्ती में 
    फिर से उमंग व आशा की रोशनी करे ।
    हताश होकर बैठ गये जो घोर तम में
    उनकी उम्मीदों के दीप प्रज्वलित करें ।

    रूठ गये हैं जो जैसे टूट गये हैं
    उनमें अपनापन का अहसास भरें।
    भूल गये हैं भटक गये हैं मानवता से
    आओ संस्कारो का नव निर्माण करें ।

    स्नेह,प्रेम व भाईचारे की वीर वसुंधा पर
    आओ नित नये कीर्तिमान स्थापित करें।
    रिश्तों से महकती इस प्यारी बगिया पर
    आओ दीप से दीप प्रज्वलित करें ।

    वध कर मन के कपटी रावण का
    निश्छल व सत्यव्रत को परिमार्जित करें।
    त्याग कर गृह क्लेश व राग द्वेष की भावना
    समृद्धि सृजित गृह लक्ष्मी का आह्वान करें ।

    हो नित नव सृजन, उन्नति फैले चहुओर
    खुशियां हो घर घर ऐसा उज्जाला करें।
    मिलाकर एक दूसरे के कदम से कदम
    आओ हम मिलकर खुशियों के दीप जलाये।।

    एल आर सेजु थोब ‘प्रिंस’
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  • कविता का बाजार- आर आर साहू

    कविता का बाजार

    अब लगता है लग रहा,कविता का  बाजार।
    और कदाचित हो रहा,इसका भी व्यापार।।

    मानव में गुण-दोष का,स्वाभाविक है धर्म।
    लिखने-पढ़ने से अधिक,खुलता है यह मर्म।।

    हमको करना चाहिए,सच का नित सम्मान।
    दोष बताकर हित करें,परिमार्जित हो ज्ञान।।

    कोई भी ऐसा नहीं,नहीं करे जो भूल।
    किन्तु सुधारे भूल जो,उसका पथ अनुकूल ।।

    परिभाषित करना कठिन,कविता का संसार।
    कथ्य,शिल्प से लोक का साधन समझें सार।।

    यशोलाभ हो या न हो,जागृत हो कर्तव्य।
    शब्द देह तो सत्य से,पाती जीवन भव्य।।

    सच को कहने का सदा,हो सुंदर सा ढंग।
    वाणी की गंगा बहे,शिव-शिव करे तरंग।।

    टूटे-फूटे शब्द भी,होते हैं अनमोल ।
    प्रेम भाव उनमें सदा,मधुरस देते घोल।।

    कविता,रे मन बावरे,प्रेम,नहीं कुछ  और।
    साध सके शुभ लोक का,शब्द वही  सिरमौर।।
    ——R.R.Sahu
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  • जिंदगी के सफर पर कविता- हरीश पटेल

    जिंदगी के सफर पर कविता

    ज़िंदगी का सफ़र है मृत्यु तक।
    तुम साथ दो तो हर शै मयख़ाना हो !

    हर रोज.. है एक नया पन्ना।
    हर पन्ने में, तेरा फ़साना हो !!

    यहाँ हर पल बदलते किस्से हैं 
    हर किस्से का अलग आधार है ।
    अपने दायरे में सब सच्चे हैं 
    उनका बदलता बस किरदार है ।

    लगता कोई पराया अपना-सा हो 
    कभी लगता दूर का अनजाना हो ।।
    ज़िंदगी का सफ़र है मृत्यु तक।
    तुम साथ दो तो हर शै मयख़ाना हो !

    सभी फंसे हैं समय-चक्र में,
    उसके ना कोई पार है ।
    कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादें हैं 
    वही जीवन का सार है ।।

    शोरगुलों के और महफ़िलों के दरमियां 
    लगता है दिल में भरा विराना हो ।।
    ज़िंदगी का सफ़र है मृत्यु तक।
    तुम साथ दो तो हर शै मयख़ाना हो !

    सांझ ढले जब जीवन का।
    याद तुम्हारी इन आंखों पर हो।।
    खुशियों का हो मेरा रैन बसेरा ।
    भरोसा ख़ुद के पांखों पर हो।।

    तन्हाई में गुनगुनाने को आख़िर 
    जीवन का नया तराना हो ।।
    ज़िंदगी का सफ़र है मृत्यु तक।
    तुम साथ दो तो हर शै मयख़ाना हो !

    हर रोज.. है एक नया पन्ना।
    हर पन्ने में, तेरा फ़साना हो।।
                                 ✍हरीश पटेल
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  • स्त्री एक दीप-डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

    स्त्री एक दीप

    स्त्री बदलती रही
    ससुराल के लिए
    समाज के लिए
    नए परिवेश में
    रीति-रिवाजों में
    ढलती रही……
    स्त्री बदलती रही!

    सास-श्वसुर के लिए,
    देवर-ननद के लिए,
    नाते-रिश्तेदारों के लिए
    पति की आदतों को न बदल सकी
    खुद को बदलती रही!

    इतनी बदल गयी कि
    खुद को भूल गयी!
    फिरभी किन्तु परंतु
    चलता ही रहा,
    समझाइश भी मिलती-
    दूसरों को नहीं खुद को बदल लो!

    शायद थोड़ी सी बच गयी थी खुद के लिए,
    अब बच्चे प्यार दुलार से
    मान मनुहार से,
    कहते हैं-
    थोड़ा बदल जाओ 
    बस थोड़ा सा बदल लो
    खुद को हमारे लिए..

    स्त्री पूरी बदल गयी!
    नए साँचे में ढल गयी!
    अस्तिव खोकर फिर,
    इक दिन मिट्टी में मिल गयी!

    बनी दिया मिट्टी का
    अंधेरों से लड़ती रही
    रोशन घर करने के लिए 
    तिल-तिल जलती रही

    स्त्री बदलती रही……

     बदलती ही रही….

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’
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  • पर्यावरण पर कविता-बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    पर्यावरण पर कविता-बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    पर्यावरण पर कविता

    save nature
    prakriti-badhi-mahan

    पर्यावरण खराब हुआ, यह नहिं संयोग।
    मानव का खुद का ही है, निर्मित ये रोग।।

    अंधाधुंध विकास नहीं, आया है रास।
    शुद्ध हवा, जल का इससे, होय रहा ह्रास।।

    यंत्र-धूम्र विकराल हुआ, छाया चहुँ ओर।
    बढ़ते जाते वाहन का, फैल रहा शोर।।

    जनसंख्या विस्फोटक अब, धर ली है रूप।
    मानव खुद गिरने खातिर, खोद रहा कूप।।

    नदियाँ मैली हुई सकल, वन का नित नाश।
    घोर प्रदूषण जकड़ रहा, धरती, आकाश।।

    वन्य-जंतु को मिले नहीं, कहीं जरा ठौर।
    चिड़ियों की चहक न गूँजे, कैसा यह दौर।।

    चेतें जल्दी मानव अब, ले कर संज्ञान।
    पर्यावरण सुधारें वे, हर सब व्यवधान।।

    पर्यावरण अगर दूषित, जगत व्याधि-ग्रस्त।
    यह कलंक मानवता पर, हो जीवन त्रस्त।।


    (सुजान २३ मात्राओं का मात्रिक छंद है. इस छंद में हर पंक्ति में १४ तथा ९ मात्राओं पर यति तथा गुरु लघु पदांत का विधान है। अंत ताल 21 से होना आवश्यक है।)


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद