Category: हिंदी कविता

  • चुनाव का बोलबाला

    चुनाव का बोलबाला

    हर  गली   में   बोलबाला  है।
    अब  वक्त  बदलने  वाला  है।।
    जो चुनाव नजदीक आ गया,
    बहता   दारू  का   नाला  है।।
    उन्हें  वोट  चाहिए  हर  घर  से,
    हर  महिला  इनकी  खाला  है।।
    साम, दाम, दण्ड, भेद अपनाए,
    सच  की  छाती  पर  छाला  है।।
    झुग्गी  में   नेता   रोटी   खाए,
    समझ  लो गड़बड़  झाला  है।।
    कल  चाहे  ये  बलात्कार   करें,
    आज  बहन  हर  एक  बाला है।।
    ये  इतना  मीठा  बोल  रहे   हैं,
    जरूर   दाल   में   काला   है।।
    सिल्ला ऐसा नशा है सियासत,
    नहीं   कोई   बचने   वाला   है।।
    -विनोद सिल्ला
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर होता नहीं विराम

    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                          होता नहीं विराम,
    दुख    के   पर्वत,नदिया,नाले
                   सुख का अल्प विराम।
    अब तक मुझको समझ न आया
                       इस जगती का राग
    रास       न आयी   इसकी  माया
                     कैसे    हो   अनुराग !
    शिथिल हुआ है तन ये जर्जर
                   मन भागे   अविराम
    दुख के पर्वत , नदिया , नाले ,
                 सुख का अल्प विराम।
    छायी है बस ग़म की बदली
                     आँसू का     संवाद
    साँसों    की   सरगम में गूँजे
               धड़कन का  अनुवाद।
    आपाधापी    अन्दर- बाहर
                   तनिक नहीं विश्राम ।
    दुख के पर्वत , नदिया ,नाले,
              सुख का अल्प विराम ।
    कालचक्र गतिशील निरन्तर
                   होता  नहीं विराम
    दुख के पर्वत, नदिया ,नाले
                 सुख का अल्प विराम ।
              नीलम सिंह 
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ

    सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ

    ~~~~
    सरस्वती दाई तोर पइयां लागव ओ।
    कंठ में बिराजे जेकर भाग जागय ओ।
    तोरे आसरा म नान्हे लइका पढ़ जाथे।
    बुद्धि पाके ज्ञानी कलाकार बन जाथे।
    मन ल भरमा के तंय,
    धार ल ठहरा के तंय।
    डहके डुबत नइयां लागय ओ।
    सरसती दाई ………
    बिनती हावय दाई सब ल ज्ञान म नौहादे।
    दुखिया ल सुख दे तंय पीरा बिसरादे
    अंतस में रम के तंय,
    अंजोरी कस बर के तंय।
    तीपत घाम घलो छइहां लागय ओ।
    सरसती दाई तोर पइयां लागव ओ।
    माथ म बिराजे ओकर भाग जागय ओ।
    नाम – तेरस कैवर्त्य ‘ऑसू’
    गांव – सोनाडुला, (बिलाईगढ़)
    जिला – बलौदाबाजार-भाटापारा (छ. ग.)
    मोबाइल 9399169503, 9165720460
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार

    उगादी सृष्टि की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए नौ दिनों में मनाया जाता है, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने उगादी पर ब्रह्मांड का निर्माण शुरू किया था. त्योहार दुर्गा के नौ रूपों का जश्न मनाता है, और पहला दिन (चैत्र नवरात्रि) मानव जाति की शुरुआत का जश्न मनाने के लिए समर्पित है। चैत्र नवरात्र से सम्बंधित एक कविता

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार

    आया है चैत्र नवरात्र का त्योहार,

    घर घर होगी घट स्थापना, मां दुर्गा नवरूप।
    सजे आज मंदिर सारे, जलें हैं दीप और जल रही धूप।।
    हो रही मां अम्बे हर्षित, फैला हैं उजियारा।
    मां का आशीर्वाद पाकर, धरती पर बचे नहीं कोई दुखियारा।।
    नव पंडाल लगे हैं, फूलों से जो सदा सजे हैं।
    भजन कीर्तन होते नित, मां की छत्रछाया में आ रहे खूब मजे हैं।।
    हवन हो रहे , माता को मनाना हैं।
    चैत्र नवरात्र में जीवन सफल बनाना हैं।।
    अखंड ज्योत से रोशन जीवन, मन पावन हो जाते।
    हाथ धरे जो मात भवानी, भवसागर तर जाते।।
    अन्न धन्न भंडार भरे मां, कृपा सदा बरसाती ।
    सिंह सवार मां दुर्गा, भक्ति रस में डुबाती।।
    कंजिका पूजन करके, चरण प्रक्षालित करने हैं।
    जीवन बन जायेगा सफल, मां चरणों में बहते स्नेह झरने हैं।।
    सुख समृद्धि की दाता माता भवानी, हम तो हैं खल कामी।
    स्वार्थलोलुपता और ईर्ष्या को आओं आज भुला दें।
    जीवन ज्योति घर आंगन गलियारे आओं आज जला दें।।


    धार्विक नमन, “शौर्य”,डिब्रूगढ़, असम,मोबाइल 09828108858
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं

    दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं

    दिल की बात जुबाँ पे अक्सर हम लाने से डरते हैं
    कहने को तो हम कह जाएँ पर कहने से बचते हैं।
    दिल वालों की इस बस्ती में कौन किसी का अपना है
    कहने को अपना कह जाएँ पर कहने से डरते हैं ।
    चाहत की बुनियाद पे हमने ख़्वाबों की तामीर रखी
    सतरंगे अहसासों को हम बस अब अपना कहते हैं।
    चाहत के  रिश्ते में हमने क्या खोया क्या पाया है
    खुद को खोकर उसको पाया हम ये कहते रहते हैं।
    इश्क़ अधूरा अपना यारों अब कहने की बात नहीं
    बस्ती बस्ती, सहरा सहरा मुस्काकर दुख सहते हैं।
    ज़ख्म सिये उल्फ़त में हमने जाने क्या क्या जतन किये
    आंखों से अश्कों के मोती फिर भी झरते रहते हैं।
    आवारा ये दिल का पंछी गगन तले उड़ता  जाए
    मिल जाएगा कोई नशेमन साथ हवा के बहते हैं।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर