Category: हिंदी कविता

  • जब याद तुम्हारी आती है

    जब याद तुम्हारी आती है

    जब याद तुम्हारी आती है
    मन आकुल व्याकुल हो जाता है
    तुम चांद की शीतल छाया हो
    तुम प्रेम की तपती काया हो।


    तुम आये भर गये उजाले
    सफल हुए सपने जो पाले
    द्वार हंसे, आंगन मुसकाये
    भाग्य हो गये मधु के प्याले ।


    तुम हो सावन की रिमझिम फुहार
    तुम फागुन के रंग रसिया
    जिन क्षणों तुम साथ  रहे हो
    वहीं पर मेरे मधु मास हुए हैं।

    तुम दूर रहो या पास रहो
    तुम्ही प्रेम का एहसास हो
    इस बहती जीवन धारा में
    तुम जीने की आस हो।

    कालिका प्रसाद सेमवाल
    मानस सदन अपर बाजार
    रुद्रप्रयाग उत्तराखंड 246171

  • नयनों की भाषा

    नयनों की भाषा

    तुमने चाहा था
    मैं  कुछ सीखूँ
    कुछ  समझूँ
    कुछ  सोचूँ
    पर  जब मैंने
    कुछ   सीखा
    कुछ  समझा
    कुछ  सोचा
    तब  तक बहुत देर
    हो चुकी थी,
    मेरे जीवन के
    अनेक फासले
    तय हो चुके थे
    जिन्दगी नये राह पर थी ।


    आज
    जब तुम अचानक
    मेरे सामने आई
    मुझे देखकर
    धीरे से मुस्काये
    थोडी सकुचाई
    थोडी सी शरमाई
    मैंने तुम्हारे नयनो की भाषा को
    पढ़ लिया
    लेकिन तब तक
    जिन्दगी तो
    अनेक फैसले
    ले चुकी थी
    अब बहुत देर हो चुकी थी
    दोनों के नैनों में बस आँसू थे।

     कालिका  प्रसाद  सेमवाल

  • दौलत की भूख

    दौलत की भूख

    आया कैसा नया ज़माना
    दौलत आज सभी को पाना
    यह एक ऐसी भूख है
    रिश्तों की बेल जाती सूख
    किसी की परवाह न करे

    इंसान झूठ बोलने में माहिर हुआ
    कुत्सित काम है बात आम
    लालच ने यूं अंधा किया
    भ्रष्टाचार  अंदर तक पनपा
    सारे नाते रिश्ते तोड़े 

    बिना डरे क्षुधा फिर भी नहीं मिटती है।
    पैसा  मात्र इक  गिनती  है
    जोड़े जाओ जोड़े जाओ
    गिनती नहीं थमती है
    रिश्वत लेन देने में न डरे

    पैदा तो खाली  हाथ हुआ
    भोलापन हृदय का गुम हुआ
    फिर  भूला  सारी  सच्चाई
    अंधाधुंध करे अब कमाई
    पैसे के लिए कत्ल से भी न डरे

    धन  के  पीछे  भागता मानव
    मूल्य सारे त्याद बना दानव
    अमिट भूख ने बदला कैसा
    उसके चश्मे का रंग भी पैसा
    रोज चश्मे बदलने में न डरे

    मूल्य गए भाड़ में
    खुशियां चढ़ीं झाड़ पे
    कृत्रिम खुशी ही सबकुछ बनी
    पैसे के कारण सबसे ठनी
    लूट सकता अब वह बिना डरे

    *प्रवीण त्रिपाठी, नई दिल्ली*

  • सोच सोच के सोचो

    सोच सोच के सोचो

    नारी ना होती,श्रृंगार करता कौन?
    हुस्न की बात चले तो,तेरा नाम लेता कौन?


    नख-शिख चित्रण ,उभारता कौन?
    गर ना श्रृंगार होता,कविताएँ लिखता कौन?
    कवि की लेखनी क्या होती मोन?
    श्रृंगार देख बिन पिये, नशा चढ़ाता कौन?

    पल-पल क्षण-क्षण,प्रिय मिलन की आस जगाता कौन?
    सांझ का आँचल लहराये, मनमद मस्त महकाता कौन?
    दो दिलों के मिलन का आधार बनाता कौन?
    रसराज श्रृंगार की गाथा, गाता कौन?


    हाय, विरह की पीडा़ को,दर्पण जैसा दिखलाता कौन?
    श्रृंगार के वियोग में, प्रेम मे बहकाता कौन?
    देखे,जो हसीन ख्वाब, दुल्हन बन रंग भरता कौन?
    रसराज बिना,रसपान कराता कौन?


    पुष्प नया खिलाता कौन?
    प्रियतम तेरे प्रेम में, चातक -चकोर सा दर्द जगाता कौन?
    अनगिनत दिलों को, मुहोब्बत का रास्ता दिखलाता कौन?
    सोचो सोच के सोचो।।

                                अनिता पुरोहित
                                   मोल्यासी सीकर

  • सच्ची मुहब्बत पर गजल

    सच्ची मुहब्बत पर गजल

    भला इस दौर में सच्ची मुहब्बत कौन करता है
    बिना मतलब जहाँ भर में इबादत कौन करता है
    हसीं रंगीन दुनिया के नजारे छोड़ कर पीछे
    मुहब्बत के सफीनों की जियारत कौन करता है
    यह खुदगर्ज़ी भरी दुनिया यहाँ कोई नहीं अपना
    किसी मजबूर पर दिल से इनायत कौन करता है
    अमीरी में हज़ारों हाथ बन जाते सहारा पर
    ग़रीबी में पकड़ दामन अक़ीदत कौन करता है
    खुराफ़ाती हवाओं के तने तेवर यहां पर जो
    दिखाकर दम बयां सबसे हक़ीक़त कौन करता है

    कुसुम शर्मा अंतरा
    जम्मू कश्मीर