हरिहरण छंद
चित स्याम धार कर,
सोलह सिंगार कर,
जमुना को पार कर,
बन में पधार कर |
नेह से निहार कर,
गर बाँह डार कर,
तन मन वार कर,
विमल विहार कर ||
प्रेम-प्रीति प्यार कर,
लोक लाज हार कर,
मृदु मनुहार कर,
सुरति विसार कर |
पुन पट झार कर,
सुमुख संवार कर,
चली उर गार कर,
‘विश्वेश्वर’ धार कर||
विश्वेश्वर शास्त्री’विशेष’
राठ हमीरपुर उ.प्र.