गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
जय गणेश जी पर कविता
ददा ल जगा दे दाई,
बिनती सुनाहुं ओ,
नौ दिन के पीरा ल,
तहु ल बताहुं ओ।
लईका के आरो ल सुनके,
आँखी ल उघारे भोला,
काए होेगे कइसे होगे,
कुछु तो बताना मोला।
कईसे मैं बतावौ ददा,
धरती के हाल ल,
आँसू आथे कहे ले,
भगत मन के चाल ल
होवथे बिहान तिहा,
जय गणेश गावथे,
बेरा थोकन होय म,
काँटा ल लगावथे।
गुड़ाखू ल घसरथे,
गुटका ल खाथे ओ,
मोर तिर म बईठे,
इकर मुँह बस्सावथे।
मोर नाव के चंदा काटे,
टूरा मन के मजा हे,
इहे बने रथव ददा,
ऊँंहा मोर सजा हे।
रोज रात के सीजर दारू,
ही ही बक बक चलथे ग,
धरती के नाव ल सुनके,
जी ह धक धक करथे ग।
डारेक्ट लाईन चोरी,
एहू अबड़ खतरा,
नान नान टिप्पूरी टूरा,
उमर सोला सतरा।
मच्छर भन्नाथे मोर तिर,
एमन सुत्थे जेट म,
बडे़ बडे़ बरदान माँगथे,
छोटे छोटे भेंट म।
ऋद्वि सिद्वी तुहर बहुरिया,
दुनो रिसाये बईठे हे,
कुछू गिफ्ट नई लाये कइके,
सुघर मुँ ंह ल अईठे हे।
मोला चढ़ाये फल फूल,
कभू खाये नई पावौ ग,
कतका दुःख तोला बतावौ,
कईसे हाल सुनावौ ग।
आसो गयेव त गयेव ददा,
आन साल नई जावौ ग,
मिझरा बेसन के लाडु,
धरौ कान नई खावौ ग।
सुग्घर सृजन।